Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ श्लोक वार्तिके
आप जैनोंने प्रतिवादीके दूषणकी सामर्थ्य प्रतिपक्षका विघातकपना कहा था, अब आप फिर यह बता दीजिये कि यह प्रतिपक्षका विघातकपना क्या है ? क्या किसीको मारा या पीटा जाता है ? या किसीका अंगच्छेद किया जाता है ! या किसीके पंख उडा दिये जाते हैं ? विशेषरूप घातकपने का अर्थ यहां क्या लिया जाय ? विनीत तर्की शिष्यकी ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं ।
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सा पक्षांतरसिद्धिर्वा साधनाशक्ततापि वा । तोर्विरुद्धता यद्वदभासांतरतापि च ॥ ४४ ॥
गृहीत किये गये पक्षसे दूसरे पक्षकी सिद्धि हो जाना अथवा प्रकृत साध्यको साधनेवाले तुका अशक्तपना मी प्रतिपक्ष विघातकपन है । तथा वादीके हेतुका विरुद्धपना जिस प्रकार प्रतिप्रक्षका विघातकपन है, उसी प्रकार वादीके हेतुका अन्य हेत्वाभासों द्वारा दूषित कर देना भी प्रतिपक्ष विघातकत्व है । भावार्थ - बादमें किसीका घात या ताडन, पीडन नहीं किया जाता है । किन्तु वादी के पक्ष से दूसरे पक्षकी सिद्धि हो जाना अथवा वादीके हेतुको अपने साध्यको साधने में अशक्त कर देना, या उसके हेतुको विरुद्ध कर देना अथवा वादीके हेतुमें अन्य व्यभिचार, असिद्ध, आदि हेत्वाभासों का उठा देना यही प्रतिवादीके द्वारा उठाये गये श्रेष्ठदूषण में प्रतिपक्षका विघातकन है । पण्डितों के बाद में ग्रामीण या हिंसकों कीसी प्रवृत्ति नहीं हो पाती है। अतः कोई अभ्य अनिष्टको चिन्ता करनेका अवसर नहीं है ।
साधनस्य स्वपक्षघातिता पक्षांतरसाधनत्वं यथा विरुद्धत्वं स्वपक्षसाधनाशक्तत्वमात्रं वा यथानैकांतिकत्वादि साधनाभासत्वं दुद्भवने स्वपक्षसिद्धेरपेक्षणीयत्वात् । तदुक्तं । " विरुद्धं हेतुमद्भव्यवादिनं जयतीतरः । आभासांतरमुद्भाव्य पक्षसिद्धिमपेक्षते । " इति ।
वादीका ग्रहण किया हुआ पक्ष प्रतिवादीका प्रतिपक्ष है । प्रतिवादी श्रेष्ठ दूषणके उठाने द्वारा वादीके साधनका विधात कर देता है । अतः वादीके हेतुका अपने निज पक्षका विधात क्या है ? इसका उत्तर यही है कि अपने अभीष्ट पक्षसे न्यारे हो रहे दूसरे पक्षका प्रतिवादी द्वारा साधन किया जाना है । जिस प्रकार कि वादीके हेतुमें विरुद्धपना उठाना अथवा वादीके हेतुको अपने पक्ष साधनमें केवल अपना उठा देना भी है । अथवा जैसे अनैकान्तिकपन, सत्प्रतिपक्षपन आदिक अन्य हेत्वाभास का प्रतिवादी द्वारा उठाया जाना भी प्रतिपक्षका विघातकत्व है । किन्तु उसके उद्भावन करनेमें प्रतिवादीको अपने पक्ष की सिद्धि अपेक्षणीय है । अर्थात् -- प्रतिवादी अपने स्वपक्षको सिद्ध करता हुआ ही वादीको वामामोंके उठाने द्वारा जीत सकता है । अन्यथा नहीं । aft प्रन्थोंमें इस प्रकार कहा गया है कि वादीसे इतर प्रतिवादी विद्वान् विरुद्ध हेतुका उद्भाव कर