Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
असाधनांगवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः । निग्रहस्थानमन्यत्तन्न युक्तमिति केचन ॥ ६३ ॥ स्वपक्षं साधयन् तत्र तयोरेको जयेद्यदि । तूष्णीभूतं ब्रुवाणं वा यत्किंचित्तत्समंजसम् ॥ ६४ ॥
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बौद्धोंका मन्तव्य है कि वादीको अपने पक्षके साधन करनेवाले अंगोंका कथन करना चाहिये । वादी यदि स्वेष्टसिद्धिके कारण प्रतिज्ञा आदि अंगोंका कथन नहीं करेगा तो वादीका पराजय हो जायगा । तथा प्रतिवादीका कर्त्तव्य तो वादीके साधनोंमें दोष उठाना है । प्रतिवादी यदि समीचीन दोषोंको नहीं उठावेगा या अन्ट सन्ट अदोषोंको उठावेगा तो प्रतिवादीका पराजय हो जायेगा । इस प्रकार वादी या प्रतिवादी दोनोंके निग्रहस्थान प्राप्त करनेकी व्यवस्था कर दी गयी है। इससे मिन्न अन्य कोई निग्रहस्थान माना जावेगा, वह तो युक्तिपूर्ण नहीं होगा । इस प्रकार कोई बौद्ध मत अनुयायी कथन कर रहे हैं । उसपर अब आचार्य कहते हैं कि उन वादी, प्रतिवादी, दोनों में से कोई भी एक अपने पक्षकी सिद्धि करता हुआ यदि चुप हो रहे या जो कुछ मी मनमानी बक रहे दूसरेको जीतेगा कहोगे तब तो उन बौद्धोंका कथन न्यायपूर्ण है । अर्थात् - केवल साधनाम वचन ही वादीका निग्रहस्थान नहीं । हां, प्रतिवादी पक्षकी सिद्धि हो चुकनेपर वादीका असाधनांग वचन करना वादीका पराजय करा देता है । यों वादक पक्षकी सिद्धि हो चुकमेवर प्रतिवादीका दोष नहीं उठाना उस प्रतिवादीके निग्रहका प्रयोजक है, अन्यथा नहीं ।
सस्यमेतत्, स्वपक्षं साधयन्नेवासाधनांगवचनाददोषोद्भावनाद्वा वादी प्रतिवादी वा तूष्णीभूतं यत्किचित्रुवाणं वा परं जयति नान्यथा केवळं पक्षो वादिप्रतिवादिनोः सम्यक् साधनदुषणवचनमेवेति पराकूतमनूद्य प्रतिक्षिपति ।
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बौद्ध कहते हैं कि यह स्याद्वादियोंका कहना ठीक है कि अपने पक्षकी सिद्धि कराता हुआ ही वादी अथवा प्रतिवादी उन असाधनांग वचनसे अथवा दोषोत्थान नहीं करनेसे सर्वथा चुपचाप हो रहे अथवा जो भी कुछ भाषण कर रहें दूसरोंको जीत लेता है । अन्यथा नहीं जीत पाना है । केवल बात यह है कि वादीका पक्ष समीचीन साधनका कथन करना ही माना जाय और प्रतिवादका पक्ष समीचीन दूषणका कथन करना ही माना जाय । इस प्रकार दूसरोंकी कुचेष्टाका अनुवाद कर श्री विद्यानन्द आचार्य आक्षेपका प्रत्याख्यान करते हैं। यहां आचार्योंने सर्वथा चुप हो रहे या कुछ भी अंड बंड बक रहे वादी या प्रतिवादीका भी पराजय होना तभी माना है, जब कि जीतनेवाला अपने पक्षकी सिद्धि कर चुका होय । अन्यथा किसीके भी पक्षकी सिद्धि नहीं होने से कोई भी जयका अधिकारी नहीं है ।
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