Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
बादलोंका विशिष्ट गर्जन होनेसे मेघवृष्टिका अनुमान कर किया जाता है । अतः व्यतिरेक मुखसे पक्षका लक्षण उन्होंने किया है । किन्तु यह लक्षण असम्भव दोष प्रस्त है 1 स्वार्थानुमाने वाद्ये च जिज्ञासितेति चेन्मतं ।
वादे तस्याधिकारः स्यात् परप्रत्ययनादृते ॥ ५२ ॥
यदि वैशेषिक यों कहें कि परार्थानुमानमें और विजिगीषुओंके वादमें भले ही जिज्ञासित विशेष धर्मी पक्ष नहीं बने, किन्तु स्वार्थानुमानमें अथवा आदिमें कहे गये वीतराग पुरुषोंके बाद में तो निज्ञासितपना पक्ष हो जायगा । इस प्रकार वैशेषिकोंका मन्तव्य होनेपर अचार्य कहते हैं कि दूसरे प्रतिवादियोंको युक्तियों द्वारा प्रत्यय जहां कराया जाता है, उसके अतिरिक्त अन्य वाद में उस पक्षका अधिकार हो सकेगा । अर्थात् - विजिगीषुओं में प्रवर्त रहे तात्त्विक वाद में पक्षका लक्षण जिज्ञासितपना नहीं बन पाता है ।
जिज्ञापयिषितात्मेह धर्मी पक्षो यदीष्यते ।
लक्षणद्वयमायातं पक्षस्य ग्रंथघातिते ॥ ५३ ॥
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यदि वैशेषिक यों इष्ट करें कि विजिगीषुओंके वाद में जिस साध्यवान् धर्मीकी ज्ञापित कराने की इच्छा उत्पन्न हो चुकी है, तत्स्वरूप धर्मी ( ण्यन्तप्रेरक ) यहां पक्ष हो जायगा । इस पर आचार्य कहते हैं कि यों तो तुम वैशेषिकोंके यहां पक्षके दो लक्षण प्राप्त हुये, जो कि तुम्हारे पक्ष के क्षणको कहनेवाले ग्रन्थका घात कर देते हैं । अर्थात् - जिज्ञासित विशेषधर्मको पक्ष कहना और जिज्ञापयिषित धर्मीको पक्ष कहना, यह दो लक्षण तो पक्षके एक ही लक्षणको कहनेवाले प्रथका विघात कर देते हैं, जिससे कि तुमको अपसिद्धान्त दोष लगेगा ।
तथानुष्णोभिरित्यादिः प्रत्यक्षादिनिराकृतः ।
स्वपक्षं स्यादतिव्यापि नेदं पक्षस्य लक्षणं ॥ ५४ ॥
वैशेषिकों द्वारा माने गये पक्षके लक्षण में असम्भव दोषको दिखा करके आचार्य अब अतिव्याप्तिको दिखलाते हैं कि पक्षका लक्षण यदि जिज्ञासितपना माना जायगा तो किसीको अनिके अनुष्णपको जानने की इच्छा उपज सकती है । धर्म सेवनसे दुःख प्राप्ति हो जाने की जिज्ञासा हो सकती है । ऐसी दशा में प्रत्यक्षप्रमाण, अनुमानप्रमाण, आगमप्रमाण, आदिसे निराकरण किये गये अनि अनुष्ण है, जम्बूद्वपिका सूर्य स्थिर है, धर्मसेवन करना दुःख देनेवाला है, इत्यादिक मी स्त्रपक्ष हो जावेंगे । अतः अतिव्याप्ति दोष हुआ । इस कारण वैशेषिक या नैयायिकों द्वारा माना गया यह पक्षका लक्षण निर्दोष नहीं है ।