Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
है । इस करके वादमें अपसिद्धान्त नामक निग्रहस्थानके उठानेका नियम वखाना है। और वादके लक्षणमें " पंचावयवोपपन्नः " ऐसा विशेषण कहा गया है । इसमें पांच इस पदके ग्रहणसे न्यून
और अधिक नामक निग्रहस्थानके उठानेका नियम कहा गया है । तथा 'अवयवोपपन्न' यानी अवयवोंसे सहित इस पदके ग्रहणसे पांचों हेत्वाभास नामक निग्रहस्थानोंका उठाना वहां वादमें नियमित कहा गया है। अर्थात्-सिद्धान्तसे अविरुद्ध वाद होना चाहिये, इससे धनित होता है जो वादी या प्रतिवादी सिद्धोतसे विरुद्ध बोळेगा उसके ऊपर अपसिद्धान्त नामका निग्रहस्थान उठा दिया जायगा " सिद्धान्तमभ्युपेत्यानियमात् कथाप्रसंशोऽपसिद्धान्तः " वात्स्यायन ऋषि इसका अर्थ यों करते हैं कि किसी अर्थके तिस प्रकार होनेकी प्रतिज्ञा कर पुनः प्रतिज्ञा किये गये अर्थक विपर्ययरूप अनियमसे कथाका प्रसंग करा रहे विद्वानके अपसिद्धान्त निग्रहस्थान हो जाता है। पांचों ही अवयव होने चाहिये । अन्यथा न्यून और अधिक मामक निग्रहस्थान लागू हो जानेसे वह विद्वान् निग्रहीत हो जावेगा । प्रतिज्ञा,हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, इन पांच अवयवों से एक भी अवयव करके यदि हीन बोला जायगा. तो न्यून निग्रहस्थान कहावेगा और हेतु या उदाहरण अधिक बोल दिये जायंगे तो अधिक नामक निग्रहस्थान हो जायगा। तथा पांचों अवयव कहने चाहिये । यदि प्रतिज्ञा नहीं कही जायगी तो आश्रयासिद्ध हेत्वाभास नामक निग्रहस्थान उसपर लगा दिया जायगा। प्रतिज्ञा कहदेनेपर तो आश्रय पक्ष हो जाता है । हेतु अवयवसे युक्त यदि याद नहीं होगा तो स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास नामक निग्रह स्थानसे वह पण्डित ग्रस लिया जावेगा। हेतु कह देनेपर तो वह हेतु पक्षमें ठहर जाता है। अतः स्वरूपा सिद्ध नहीं है। अन्वयदृष्टान्त नहीं कहनेपर विरुद्धहेत्वाभास निग्रहस्थान उठा दिया जाता है । जो हेतु सपक्षमें रहेमा वह विरुद्ध नहीं हो सकता है। व्यतिरेक दृष्टान्त नहीं देनेसे अनेकान्तिकहेत्वाभास निग्रहस्थान उठा दिया जावेगा । जो हेतु विपक्षमें नहीं बर्तेगा वह व्यभिचारी नहीं होगा । उपनयसे युक्त नहीं कहनेपर बाधित हेत्वभास नामक निग्रहस्थान दिया जासकता है। जो साध्य करके व्याप्त हो रहे हेतुसे युक्त पक्ष है, वहां साध्यकी बाधा नहीं है। निगमनसे युक्त नहीं कहनेपर सत्प्रतिपक्ष नामका निग्रह स्थान उठा दिया जाता है। व्याप्तिको रखनेवाले हेतुका व्यापक साध्य यदि वहां वर्त रहा है तो साध्याभावका साधक दूसरा हेतु वहां कथमपि नहीं भटक सकता है । इस प्रकार अपसिद्धान्त, न्यून, अधिक, और पांच हेत्वाभास ऐसे आठ निग्रह स्थानोंका उठाना उस वादमें बखाना गया है। विजिगीषा रखनेवाले ही पण्डित दूसरोंके ऊपर निग्रहस्थान उठा सकते हैं । अत जिगीषु पुरुषोंमें ही वाद प्रवर्तता है।
ननु वादे सतामपि निग्रहस्थानानां निग्रहबुध्योद्भावनाभावान्न जिगीषास्ति । तदुक्तं तर्कश न भूतपूर्वगतिन्यायेन वीतरागकथात्वज्ञापनादुद्भावनियमो लभ्यते तेन सिद्धांताविरुद्धः पंचावयवोपपन्न इति चोत्तरपदयोः समस्तनिग्रहस्थानाद्युपलक्षणार्थत्वाद् वादेऽ. प्रमाणबुध्या परेण छळजातिनिग्रहस्थानानि प्रयुक्तानि न निग्रहबुध्योद्भाव्यते किंतु