Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
करोति क्रियते पुष्यस्तारकऽऽपोऽभ इत्यपि । कारकव्यक्तिसंख्यानां भेदेपि च परे जनाः ॥ ७० ॥ एहि मन्ये रथेनेत्यादिकसाधनभिद्यपि । संतिष्ठेतावतिष्ठतेत्याधुपग्रहभेदने ॥७१॥ तन श्रेयः परीक्षायामिति शद्धः प्रकाशयेत् । कालादिभेदनेप्यर्थाभेदनेतिप्रसंगतः ॥ ७२ ॥
विश्वं दृष्टवान् इति विश्वदृश्वा, जो सम्पूर्ण जगतको पहिले देख चुका है, वह विश्वदृश्या कहा जाता है । जनिता यह "जनी प्रादुर्भावे " धातुके लुट् लकारका भविष्यकालका व्यंजक रूप है। भूतकालसम्बन्धी विश्वदश्वा और भविष्यत्काळसम्बन्धी जनिताका समानाधिकरण होकर अन्वय हो जाना विरुद्ध है । किन्तु व्यवहारके अनुसार काळमेद होनेपर मी इस सिद्धार्थ राजाके " विश्वको देख चुका पुत्र होगा" इस प्रकार एक ही पदार्यका सादर ग्रहण किया जा चुका है। भावार्थ-व्यवहारनय विश्वदृश्वा और जनिता पदोंका सामानाधिकरण्य कर एक अर्थ जोड देती है। इसमें विशिष्ट चमत्कारके अर्थको निकालना व्यवहारनयको अभिप्रेत नहीं है । जो ही विश्वं दृक्ष्यतिका अर्थ है, वही विश्वदृश्वाका अर्थ वटित हो जाता है । न्यारे न्यारे काठोंका विशेषण लग जानेसे अर्थमें भेद नहीं हो जाता है । तथा " देवदत्तः कटं करोति ” देवदत्त चटाईको बुनता है और " देवदत्तेन कटः क्रियते " देवदत्त करके चटाई बुनी जा रही है, यहां स्वतंत्रता और पराधीनताका भेद होते हुये मी व्यवहारनय उक्त दोनों वाक्योंका एक ही अर्थ माने हुये है । कर्ता. कारक और कर्मकारकके भेदसे अर्थका भेद नहीं हो जाता है । तथा एक व्यक्ति पुष्यनक्षत्र, और तारका अनेक व्यक्ति, इस प्रकार एक अनेक या पुंल्लिंग, स्त्रीलिंगका, भेद होनेपर भी दूसरे मनुष्य यहां अर्थभेद नहीं मानते हैं। ऐसे ही " आप " यह शद्ध बहुवचन है, स्त्रीलिंग है
और " अम्मः " शब्द एकबचन है नपुंसकलिंग है । ये दोनों शब्द पानीको कहते हैं। यहां भी लिंग और संख्याके भेद होनेपर भी अनेक मनुष्य व्यवहार नयके अनुसार अर्थभेदको नहीं मानते हैं । तथा "ये बालक इधर आओ" तुम यह समझते होंगे कि मैं रथपर चढकर जाऊंगा, किन्तु अब तुम समझो कि मैं नहीं जा सकूँगा । तुम्हारा पिता चला गया। (तेरा बाप भी कमी गया था !), ऐसे उपहासके प्रकरणपर मध्यमपुरुषके स्थानपर उत्तमपुरुष और उत्तमपुरुषके स्थानपर मध्यमपुरुष हो जाता है। मध्यमपुरुष " मन्यसे के स्थान पर उत्तमपुरुष " मध्ये " हो गया है और यास्यामि के स्थानपर यास्यसि हो गया है । यहां साधनका मेद होनेपर भी व्यवहार