Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्य शोकवार्तिके
पीछे ही आगई, ऐसे इन प्रयोगोंमें काळभेद होनेपर भी एक ही वाच्यार्थका वे पण्डित आदर कर मान बैठे हैं । जो सम्पूर्ण जगत्को देखेगा वह प्रसिद्ध पुत्र इस ( महासेन राजा ) के होगा, इस प्रकार भविष्यमें होनेवाले कालके साथ अतीतकाळका अभेद मान लिया गया है। क्योंकि स्थूल बुद्धिवालोंकी मातृभाषामें तिस प्रकारका व्यवहार हो रहा देखा जाता है । प्रमुने किसी मृत्यको द्वितीयाके दिन आज्ञा दी की एकादशीको तुम दूसरे गांवको जाना, वहां डाकुओंका प्रम्बध करना है। अपने कुटुम्बमें ही रहते हुये भृत्यको प्रामान्तरको जाना अभीष्ट नहीं था । वह नौमीको विचारता है कि अरे, बहुत शीघ्र परसों हि एकादशी हो गई खेद है । " श्रियः पतिः श्रीमति शासितुं जगद् जग. निवासो वसुदेव सद्मनि । वसन्ददर्शावतरन्तमम्बराद्धिरण्यगर्भागभुवं मुनि हरिः" इत्यादि स्थलोंपर वसन् ( वर्तमानकाल ) और ददर्श ( भूतकाल ) के भेद होनेपर मी एक अर्थकी संगति कर दी गयी है। अब शब्दनयका आश्रय कर आचार्य महाराज कहते हैं कि परीक्षा करनेपर वह वैयाकरणोंका मन्तव्य श्रेष्ठ नहीं ठहरता है, इसमें मूलसिद्धान्तकी क्षति हो जाती है । यदि कालका भेद होनेपर भी अर्थका भेद नहीं माना जावेगा तो अतिप्रसंग दोष होगा। अतीतकालसम्बन्धी रावण और भविष्य कालमें होनेवाले शंख नामक चक्रवर्तीका एकपना प्राप्त हो जावेगा । अर्थात्-रावण और चक्रवर्ती दोनों एक व्यक्ति बन बैठेंगे । कोई इस प्रसंगका यों वारण करना चाहता है कि रावण राजा पूर्वकालमें हुआ था और शंखनामक चक्रवर्ती भविष्यकालमें होगा। इस प्रकार दो शब्दोंकी मिन्न भिन्न अर्थोमें विषयता है । इस कारण दोनों राजा एक व्यक्तिरूप अर्थ नहीं पाते हैं। आचार्य कहते हैं कि यों कहनेपर तो प्रकरणमें विश्वदृश्वा ( भूतकाल ) और जनिता ( भविष्यकाल ) इन दो शब्दोंका मी तिस ही कारण यानी मिन मिन्न अर्थको विषय कर देनेसे ही एक अर्थपना नहीं होओ । कारण कि देखो जो सबको देख चुका है, ऐसे इस विश्वदृश्ना शब्दका जो अर्थ भूतकाल सम्बन्धी पुरुष होता है, वह भविष्यकाल सम्बन्धी उत्पन्न होवेगा, इस जनिता शब्दका अर्थ नहीं है। भविष्यकाळमें होनेवाले पुत्रको अतीतकाल सम्बन्धीपनका विरोध है । जैसे कि स्वर्ग और पातालके कुलावे नहीं मिलाये जा सकते हैं, उसी प्रकार कोई भी पुत्र एक टांग चिर अतीतकाल की नावपर और दूसरी टांगको भविष्यकालकी नावपर धरकर नहीं जन्मता है । फिर भी यदि कोई यों कहें कि भूतकालमें भविष्यकाळपनेका अध्यारोप करनेसे दोनों शब्दोंका एक अर्थ अभीष्ट कर लिया गया है, तब तो हम कहेंगे कि कालभेद होनेपर भी वास्तविकरूपसे अर्थोके अभेदकी व्यवस्था नहीं हो सकी । बस, यही तो शब्दनयद्वारा हमें समझाना है। विश्वं दृश्यति सोऽस्य पुत्रो जनिता इसके सरल अर्थसे विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनिता इसका अर्थ चमत्कारक है । ''तुम पढोगे और मैं तुमको देखूगा" इसकी अपेक्षा पढ चुके हुये तुमको में देखेंगा, इसका अर्थ विलक्षण प्रतीत हो रहा है । थोडेसे चमत्कारसे ही सालङ्कारता आ जाती है। साहित्य कलामें और क्या रक्खा है ! प्रकृष्ट विद्वान् तो "शास्त्रेषु भ्रष्टाः कवयो भवन्ति" ऐसा कहा करते हैं।