Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
२५९
तथा करोति क्रियते इति कारकयोः कतृकर्मणोर्भेदेप्यभिन्नमर्थत एवाद्रियंते स एव करोति किंचित् स एव क्रियते केनचिदिति प्रतीतेरिति । तदपि न श्रेयः परीक्षायां । देवदत्तः कटं करोतीत्यत्रापि कर्तृकर्मणोर्देवदत्तकटयोरभेदप्रसंगात् ।
तिस ही प्रकार वे वैयाकरण जन " करोति " इस दशगणीके प्रयोगकी संगतिको करने - वाले कर्त्ता कारक और किया जाय जो इस प्रकार कर्म प्रक्रिया के पद की संगति रखनेवाले कर्मकारक इन दो कारकोंका भेद होनेपर भी अभिन्न अर्थका आदरपूर्वक ग्रहण कर रहे हैं । देवदत्त किसी अर्थको कर रहा है, इसका जो हि अर्थ है और किसी देवदत्त करके कुछ किया जाता है, इसका भी वही अर्थ है, ऐसी प्रतीति हो रही है । इस प्रकार वैयाकरणों के कहनेपर आचार्य कहते हैं कि परीक्षा करने पर वह भी श्रेष्ठ नहीं ठहर पायेगा। क्योंकि यों कर्त्ता और कर्मके अभेद माननेपर तो देवदत्त चटाईको रचता है । इस स्थळमें भी कर्ता हो रहे देवदत्त और कर्म बन रहे चटाई के अभेद हो जानेका प्रसंग हो जावेगा । अतः स्वातंत्र्य या परतंत्रताको पुष्ट करते हुहे यहां भिन्न भिन्न अर्थका मानना आवश्यक है ।
तथा पुष्यस्तारके (का इ) त्यत्र व्यक्तिभेदेपि तत्कृतार्थमेकमाद्रियंते, लिंगमशिष्यं लोकाश्रयत्वादिति । तदपि न श्रेयः, पटकुटीत्यत्रापि पटकुट्योरेकत्वप्रसंगात् तल्लिंग भेदाविशेषात् ।
तिसी प्रकार वे वैयाकरण पुष्पनक्षत्र तारा है, यहां व्यक्तियां या लिंग के भेद होनेपर भी के द्वारा किये गये एक ही अर्थका आदर कर रहे हैं। कई ताराओंका मिल कर बना एक पुष्यनक्षत्र माना गया है । तथा पुष्य शद्व पुल्लिंग है, और तारका शद स्त्रीलिंग है । फिर भी दोनोंका अर्थ एक है । उन व्याकरणवेत्ताओंका अनुभव है कि लिंगका विवेचन कराना शिक्षा देने योग्य नहीं है । किसी शद्बके लिंगका नियत करना लोकके आश्रय है । लोकमें अग्नि श स्त्रीलिंग कहा जाता है । किन्तु शास्त्र में पुल्लिंग है, विधि शद्वका भी यही हाल है । इंग्रेजीमें चंद्रमाको स्त्रीलिंग माना गया है । एक ही स्त्रीको कहनेवाले दार स्त्री, कलत्र, शद न्यारे लिंगोंको धार रहे हैं। आयुधविशेषको कहनेवाला शक्ति शद्व स्त्रीलिंग है । अस्त्र शब्द नपुंसकलिंग है । अब आचार्य कहते हैं कि वह वैयाकरणका कथन भी श्रेष्ठ नहीं है । क्योंकि व्यक्ति या लिंगका भेद होनेपर भी यदि अर्थ भेद नहीं माना जायगा तो पुलिंग पट और स्त्रीलिंग घडिया या झोंपडी यहां भी पट और कुटीके एक हो जानेका प्रसंग हो जायगा। क्योंकि उन शब्दों के लिंगका भेद तो अन्तररहित है, यानी जैसा पुष्प और तारकामें लिंगका भेद है, वैसा ही पट और कुटीमें लिंगका भेद है । फिर इनका एक अर्थ क्यों नहीं मान लिया जावे ।
तथापोंभ इत्यत्र संख्याभेदेप्येकमर्थं जळाख्यमादृताः संख्याभेदस्या भेदकत्वात् गुर्वादिवदिति । तदपि न श्रेयः परीक्षायां । घटस्तंतव इत्यत्रापि तथाभावानुषंगात् संख्याभेदाविशेषात् ।