Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
या कारक आदिकी कल्पना कर लेनी चाहिये । तीन काल, छह कारक, तीन लिंग, प्र, परा, आदि अनेक उपसर्ग क्यों माने जा रहे हैं । शब्दकृत और अर्थकृत गौरव क्यों लादा जा रहा है ! अतः शब्दशक्तिके अनुसार परिशेषमें उनको अर्थभेद मानना आवश्यक पडेगा। पर्वतके ऊपर सामान्य पथिकके समान निवास करनेपर पर्वतमें निवास कहा जाता है। और पर्वतके ऊपर अधिकार कर पर्वतका आक्रमण करते हुये वीरतापूर्वक जो पर्वतके ऊपर निवास किया जाता है, वहां " उपान्वध्याङ् वसः " इस सूत्रसे आधारकी कर्म संज्ञा होकर द्वितीया हो जाती है । विनीत, निर्बल, सुकुमार स्त्रीके लिये अबळा शब्द आता है। तथा पुरुषार्थ रखनेवाली और अवसरपर दुष्टोंको हथखंडे लगानेवाली स्त्री के लिये दार शब्द प्रयुक्त किया जाता है । गिलका भेद, कारकका भेद, उपसर्ग आदिकका भेद व्यर्थ नहीं पडता है।
कालभेदेप्यभिन्नार्थः । कालकारकलिंगसंख्यासाधनभेदेभ्यो भिन्नोऽर्थो न भवतीति स्वरुचिप्रकाशनमात्रं । कालादिभेदागिन्नोर्थः इत्यत्रोपपत्तिमावेदयति ।
कालके भेद होनेपर भी अर्थ अमिन ही है, काल, कारक, लिंग, संख्या, साधनके मेद हो जानेसे अर्थभिन नहीं हो पाता है। इस प्रकार वैयाकरणोंका कथन केवल अपनी मनमानी रुचिका प्रकाश करना है । वस्तुतः विचारा जाय तो काल आदिके भेदसे अर्थमें भेद हो जाता है। इस विषयमें ग्रन्थकार युक्तिको स्वयं निवेदन करें देते हैं, सुनिये ।
शद्वः कालादिभिभिन्नाभिन्नार्थप्रतिपादकः । कालादिभिन्नशद्वत्वाचाक्सिद्धान्यशद्ववत् ॥ ७५॥
शद्ध ( पक्ष ) काल, कारक, आदिकों करके मिन मिन अर्थका प्रतिपादन कर रहा है। ( साध्य ) क्योंकि वे काल, उपसर्ग आदिके सम्बन्धसे रचे गये मिन मिन प्रकारके शब्द हैं । (हेतु) जैसे कि तिस प्रकारके सिद्ध हो रहे अन्य घट, पट, इन्द्र पुस्तक आदिक शद्ध बिचारे भिन्न भिन्न अर्थोके प्रतिपादक हैं । ( दृष्टान्त )
सर्वस्थ कालादिभिन्नशद्वस्याभिन्नार्थप्रतिपादकत्वेनाभिमतस्य विवादाध्यासितत्वेन पक्षीकरणात्र केनचिद्धेतोय॑मिचारः । प्रमाणबाधित पक्षः इति चेन्न, कालादिभिन्नशद्धस्याभिन्नार्यस्वग्राहिणः प्रमाणस्य भिन्नार्थग्राहिणा प्रमाणेन बाधितत्वात् ।
वैयाकरणोंने काल, कारक, आदिसे भिन्न हो रहे जिन शब्दोंको अभिन्न अर्थका प्रतिपादकपने करके अभीष्ट कर रखा है, उन विवादमें प्राप्त हो रहेपन करके सभी शब्दोंको यहां अनुमान प्रयोगमें पक्षकोटिमें कर लिया गया है । अतः किसी भी शब्दकरके हमारे हेतुका व्यभिचार दोष नहीं हो पाता है। यदि कोई यों कहे कि आपका प्रतिज्ञारूपी पक्ष तो प्रत्यक्ष या