Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
भाव या लेज और पानी भरे कलरामें प्राह्यग्राहक मात्र कुछ कालतक उनकी स्थिति माननेपर ही घटित हो पाता है तथा शब्द और अभिधेय वाच्यवाचक भाव तभी बन सकता है जब कि श और पदार्थकी कुछ कालतक तो अवश्य स्थिति मानी जाय । वक्ता के मुखप्रदेशपर ही निकलकर नष्ट हो जानेवाले शद्व यदि श्रोता के कानमें ही न जायेंगे तो वक्ता शद्वका संकेत ग्रहण नहीं कर सकता है। उन्हीं शब्दोंका सादृश्य तो व्यवहारकालके शद्वोंमें लाना होगा। वक्ता के द्वारा दिखाया गया अर्थ श्रोताकी अख उठानेतक नष्ट हो जायगा तो ऐसे क्षणिक अर्थ में वाध्यता कैसे आसकती है ? उसको तुम बौद्ध विचारो । क्षणवर्ती शद्धोंसे श्रोता कुछ भी नहीं समझ सकता है । वादी प्रतिषादियोंके कुछ कालतक ठहरनेपर ही स्वपक्षसाधन और परपक्षदूषण सम्भवते हैं, अन्यथा नहीं ।
लोकसंवृत्तिसत्यं च सत्यं च परमार्थतः ।
hi सिध्द्यदाश्रित्य बुद्धानां धर्मदेशना ॥ ६४ ॥
२४९
तथा इस प्रकार द्रव्यका अपह्नव कर क्षणिक पक्षमें लौकिक व्यवहारसत्य और परमार्थ रूपसे सत्य ये कहां सिद्ध हो सकेंगे ? जिसका कि आश्रय कर बौद्धोंके यहां बुद्धोंका धर्म उपदेश देना बन सके । अर्थात् - वास्तविक कार्यकारणभाव माने विना व्यवहारसत्य और परमार्थसत्यका निर्णय नहीं हो सकता है । वाच्यवाचक भाव माने विना सुगतका धर्मोपदेश कानी कौडीका भी नहीं है ।
सामानाधिकरण्यं क विशेषणविशेष्यता ।
साध्यसाधनभावो वा काधाराधेयतापि च ॥ ६५ ॥
त्रिकालमें अवित रहनेवाले द्रव्यको माने विना सामानाधिकरण नहीं बन सकता है। क्योंकि दो पदार्थ एक वस्तुमें ठहरें तब उन दोनें समान अधिकरणपना होय । सूक्ष्म, असाधारण, क्षणिकविशेषों में समानाधिकरणपना असम्भव है । और बौद्धोंके यहां विशेषण विशेष्यपना नहीं बन सकता है । कारण कि संयोग सम्बन्धसे पुरुषमें दण्ड ठहरे, तब पीछे उनका विशेष्यविशेषण भाव माना जाय, किन्तु बौद्धों यहां कोई पदार्थका कहीं आधार आधेयभाव नहीं माना गया है । विशेष्यको अपने रंगसे रंग देनेवाले धर्मको विशेषण कहते हैं । ये सब कार्य क्षणमात्रमें कथमपि नहीं हो सकते तथा बौद्धोंके यहां साध्यसाधनभाव अथवा आधारभधेयभाव भी नहीं घटित हो पाते हैं । साध्यसाधनभाबके लिये व्याप्तिग्रहण, पक्षवृतित्व ज्ञान, सादृश्यप्रत्यभिज्ञान, व्याप्तिस्मरण, इनकी
श्यकता है । क्षणिकमें ये कार्य घटित नहीं होते हैं। अवयवी, साधारण, काळान्तरस्थायी, पायोंमें आधारभधेयभाव सम्भवता है । क्षणिक, परमाणु, विशेषों में नहीं
32