Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तवायचिन्तामणिः
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जान की जाती है । मर्के ही कदाचित् अन्य सामग्री नहीं मिलनेपर वे पर्यायें नहीं बन सकें, फिर भी उनका संकल्प है । बनजानेवाले और नहीं भी बन जानेवाळे पदार्थोंके विद्यमान होने में संकल्पकी अपेक्षा कोई अन्तर नहीं है । ज्ञाताका तैसा अभिप्राय होनेपर ही वह नय मानलिया जाता है। ईंधन, पानी आदिके ठानेमें व्यापार कर रहा पुरुष भात पकानेके अभिप्रायको इस नय द्वारा व्यक्त करदेता है । ऐसी दशा में वह असत्यभाषी नहीं है । सत्यवक्ता है ।
नन्वयं भाविनीं संज्ञा समाश्रित्योपचर्यते । अप्रस्थादिषु तद्भावस्तंडुलेष्वोदनादिवत् ॥ १९ ॥ इत्यसद्वहिरर्थेषु तथानध्यवसानतः । स्ववेद्यमान संकल्पे सत्येवास्य प्रवृत्तिः ॥ २० ॥
यहां किसी प्रतिवादीका भिन्न प्रकार ही अवधारण है कि यह नैगम नयका विषय तो भविष्य में होनेवाली संज्ञा का अच्छा आश्रय कर वर्तमान में भविष्यका उपचार युक्त किया गया है, जैसे कि प्रस्थ, चौकी, सन्दूक आदिके नहीं बनते हुये भी कोरी कल्पनाओंमें उनका सद्भाव गढ लिया गया है । अथवा चावलोंमें भात, खिचडी, हिस्से ( चावलों का बनाया गया पकवान ) आदिका व्यवहार कर दिया जाता है । अर्थात् विषयोंमें केवल भविष्यपर्यायकी अपेक्षा व्यवहार कर दिया जाता है। इसके लिये विशेष नयज्ञान माननेकी आवश्यकता नहीं है। अब आचार्य कहते हैं कि यह तुम्हारा कहना प्रशंसनीय नहीं है। क्योंकि बहिरंग बर्थोंमें तिस प्रकार भावी संज्ञाकी अपेक्षा अध्यवसाय नहीं हो रहा है। थोडा विचारो तो सही कि जब लकड़ी काटने को जा रहा है, या चौका बर्तन कर रहा है, उस समय ककडी या चावल सर्वथा नहीं हैं, वरहे या हाटसे पीछे आयेंगे, फिर भी भविष्यपर्यायोंका व्यवहार मला कौनसी भूतपर्यायों में करेगा ! असत् पदार्थमें तो उपचार नहीं किया जाता है । किन्तु असत् पदार्थका भिन्न कालों में संकल्प हो सकता है। अपने द्वारा जाने जा रहे संकल्पके होनेपर ही इस नयकी प्रवृत्ति होना माना गया है। किसीका संकल्प होगा तभी तो उसके अनुसार सामग्री मिलायेगा, प्रयत्न करेगा । अन्यथा चाहे जिससे चाहे कुछ भी कार्य बन बैठेगा, मळे ही संकल्पित पदार्थ वर्तमानमें कोई अर्थक्रिया नहीं कर रहा है, फिर भी इस नैगमनयका विषय यहां दिखला दिया है । और मैं तो कहता हूं कि संकल्पित पदार्थोंसे भी अनेक कार्य हो जाते हैं । स्वप्नमें नाना ज्ञान संकल्पों द्वारा हो जाते हैं। बहुतसे भय, हास्य, आदि भी संकल्पोंसे होते हैं । संसार में अनेक कार्य संकल्पमात्रमे हो रहे हैं। कहांतक गिनाये जाय कच्छपी संकल्प उसके बच्चों की अभिवृद्धिका कारण है । दरिद्र पुरुषोंके संकल्प उनके दुःखके कारण बन रहे हैं। कैई ठलुआ पुरुष व्यर्थ संकल्प, विकल्पोंकरके पापबन्ध करते रहते हैं ।
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