Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्वायचिन्तामणिः
२४१
upnimashan......
निराकृतविशेषस्तु सत्ताद्वैतपरायणः ।
तदाभासः समाख्यातः सद्भिदृष्टेष्टबाधनात् ॥ ५२ ॥
अब परसंग्रह नयके समान प्रतिभास रहे खोटे परसंग्रहनयका उदाहरणसहित लक्षण करते हैं कि जो नय सम्पूर्ण विशेषोंका निराकरण कर केवल सत्ताके अद्वैतको कहनेमें तत्पर हो रहा है, वह तो सज्जन विद्वानों करके ठीक भांति परसंग्रहामास बखाना गया है। कारण कि अकेले सत् या ब्रह्मको कहते रहनेपर प्रत्यक्षप्रमाण और अनुमानप्रमाणसे बाधा उपस्थित होती है । जिसको कि हम पहिले कह चुके हैं । अर्थात्-बालक वृद्ध या कीट जीवोंको भी प्रत्यक्षसे अनेक पदार्थ दीख रहे हैं । नाना पदार्थीको भले ही अनुमानसे जान लो ।
अभिन्न व्यक्तिभेदेभ्यः सर्वथा बहुधानकं । महासामान्यमित्युक्तिः केषांचिद्दुर्नयस्तथा ॥ ५३॥ शब्दब्रह्मेति चान्येषां पुरुषाद्वैतमित्यपि । संवेदनाद्वयं चेति प्रायशोन्यत्र दर्शितम् ॥ ५४ ॥
साख्योद्वारा माना गया प्रधान तस्व तो अहंकार, तन्मात्रा, आदि तेईस प्रकारकी विशेष व्यक्तियोंसे या विशेष व्यक्तोंसे सर्वथा अभिन्न होता हुआ महासामान्यस्वरूप है। " त्रिगुणमविवेकिविषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि " (सांख्यतत्त्वकौमुदी ) इस प्रकार किन्हीं कापिलोंका तैसा मानना खोटा नय है, यानी परसंग्रहामास है । तथा अन्या शब्दाद्वैतवादियों का अकेले शब्द ब्रह्मको ही स्वीकार करना और ब्रह्माद्वैतवादियोंका विशेषोंसे रहित केवल अदयपुरुष तत्त्वको स्वीकार करना तथा योगाचार या वैमाषिक बौद्धोंका शुद्ध सम्वेदनाद्वैतका पक्ष पकडे रहना ये भी कुनय हैं। परसंग्रहामास हैं, इसको भी हम पहिले अन्य स्थानों में बहुत वार दिखला चुके हैं। विशेषोंसे रहित होता हुआ सामान्य कुछ भी पदार्थ नहीं हैं । सुशिष्यकी कृतघ्नताके समान अलीक है।
द्रव्यत्वं सकलद्रव्यव्याप्यभिप्रैति चापरः । पर्यायत्वं च निःशेषपर्यायव्यापिसंग्रहः ॥५५॥ तथैवावांतरान भेदान संगृबैकत्वतो बहुः । वर्ततेयं नयः सम्यक् प्रतिपक्षानिराकृतेः ॥ ५६ ॥
परसंग्रहनयको कहकर अब अपरसंग्रहनयका वर्णन करते हैं । परमसत्तारूपसे सम्पूर्ण भावोंके एकपनका अभिप्राय रखनेवाळे परसंग्रहद्वारा गृहीत अंशोंके विशेष अंशोंको जाननेवाला अपरसंग्रह
31