Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यलोकवार्तिके
ढंमसे तीन प्रकारका है तथा दूसरा द्रव्यनैगम तो शुद्धद्रव्यनैगम अशुद्धद्रव्यनैगम । इस ढंगसे दो प्रकार है। तया तीसरा द्रव्यपर्यायनैगम तो शुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम १ शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम २ अशुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम ३ अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम ४, इन स्वरूपोंसे चार प्रकार है। इस प्रकार नौ प्रकारका नैगमनय उनके आभासोंसे सहित हमने उदाहरणपूर्वक कहा है। जो कि प्रकाण्ड विद्वानोंकरके परीक्षा करने योग्य है । अथवा चारों ओरसे अन्य भी उदाहरण उठाकर विचार कर लेने योग्य है । और संग्रह भादिक छह नय तो भविष्यमें कहे जानेवाले हैं । इस प्रकार नौ और छहको मिलाकर सर्व पंद्रह नय संक्षेपसे समझ लेने चाहिये ।
तत्र संग्रहनयं व्याचष्टे ।
नैगम नयके भविष्यकालमें कहीं जानेवाली उन छह नयोंमेंसे अब संग्रहनयका श्री विद्यानन्दस्वामी ब्याख्यान करते हैं।
एकत्वेन विशेषाणां ग्रहणं संग्रहो नयः। खजातेरविरोधेन दृष्टेष्टाभ्यां कथंचन ॥ ४९ ॥ समेकीभावसम्यक्त्वे वर्तमानो हि गृह्यते । निरुक्त्या लक्षणं तस्य तथा सति विभाव्यते ॥ ५० ॥ शुद्धद्रव्यमभिप्रैति सन्मानं संग्रहः परः। स चाशेषविशेषेषु सदौदासीन्यभागिह ॥ ५१ ॥
अपनी सत्तास्वरूप जातिके दृष्ट, इष्ट, प्रमाणोंद्वारा अविरोध करके सभी विशेषोंका कथंचित एकपने करके ग्रहण करना संग्रह नय है। संग्रहमें सं शब्दका अर्थ समस्त है । और ग्रहका अर्थ जान लेना है । अनेक गौओंको देखकर “ यह गौ है" और " यह भी वही गौ है " इस प्रकारकी बुद्धियां होने और शोंकी प्रवृत्तियां होनेके कारण सादृश्य स्वरूपको जाति कहते हैं। सम्पूर्ण पदार्थीका एकीकरण और समीचीनपन इन दो अर्थोंमें वर्त रहा सम् शब्द यहां पकडा जाता है। तिस कारण होनेपर उस संग्रह नयका लक्षण संग्रहशद्वकी निरुक्तिसे ही विचारा जाता है। परसंग्रह नय तो सत्तामात्र शुद्ध द्रव्यका अभिप्राय रखता है । और सत् है, इस प्रकार सबको एकपनेसे ग्रहण करनेवाला वह संग्रह नय यहां सर्वदा सम्पूर्ण विशेषपदार्थोमें उदासीनताको धारण करता है । " सत्, सत्, " इस प्रकार कहनेपर तीनों कालके विवक्षित, अविवक्षित सभी जीव, अजीवके भेदप्रभेदोंका एकपमेकरके संग्रह हो जाता है।