Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
२३९
विद्यते चापरोशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्ययौ । अर्थीकरोति यः सोत्र ना गुणीति निगद्यते ॥ ४६ ॥ भिदाभिदाभिरत्यंतं प्रतीतेरपलापतः । पूर्ववन्नैगमाभासौ प्रत्येतव्यौ तयोरपि ॥ ४७ ॥
इनसे भिन्न चौथा द्रव्यपर्याय नैगमनय तो यहां वह विद्यमान है जो कि अशुद्धद्रव्य और व्यंजनपर्यायको विषय करता है । जैसे कि मनुष्य गुणी है, इस प्रकार इस नय द्वारा कहा जाता है । यहां गुणवान् तो अशुद्धद्रव्य है और मनुष्य व्यंजनपर्याय है । कथंचित् अभेदरूपसे दोनोंको यह न जान लेता है । इन दो नयोंके द्वारा विषय किये गये पदार्थोंका परस्पर में सर्वथा भेद अथवा सर्वथा अतीव अमेद करके कथन करना तो उन दोनोंके भी पूर्वके समान दो नैगमामास समझ लेने चाहिये | क्योंकि अत्यन्त भेद या अमेइ पक्ष लेनेसे प्रतीतियोंका अपलाप ( छिपाना ) होता है । अतः सत् और चैतन्यके सर्वथा मेद या अभेदका अभिप्राय शुद्धद्रव्य व्यंजनपर्याीय नैगमका आभास है तथा मनुष्य और गुणीका सर्वथा मेद या अभेद जान लेना अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय नैगमका आभास है ।
नवधा नैगमस्यैव ख्यातेः पंचदशोदिताः ।
नयाः प्रतीतिमारूढाः संग्रहादिनयैः सह ॥ ४८ ॥
इस उक्त प्रकार नैगमनयका नौ प्रकार व्याख्यान करनेसे संग्रह आदिक छह नयोंके साथ प्रतीतिमें आरूढ हो रहीं नये पन्द्रह कह दी गयीं हैं ।
त्रिविधस्तावन्नैगमः । पर्यायनैगमः, द्रव्यनैगमः, द्रव्यपर्यायनैगमश्चेति । तत्र प्रथमस्त्रेधा | अर्थपर्यायनैगमो व्यंजन पर्याय नैगमोऽर्थ व्यंजनपर्यायनैगमच इति । द्वितीयो द्विधा । शुद्धद्रव्यनैगमः, अशुद्धद्रव्यनै ममश्चेति । तृतीयश्चतुर्धा । शुद्धद्रव्यार्थ पर्यायनैगमः, शुद्धद्रव्यव्यंजन पर्यायनैगमः, अशुद्धद्रव्यार्थ पर्यायनैगमः, अशुद्धद्रव्यव्यं जनपर्यायनैगम श्रेति, नवधा नैगमः साभास उदाहृतः परीक्षणीयः । संग्रहादयस्तु वक्ष्यमाणा षडिति सर्वे पंचदश नयाः समासतः प्रतिपत्तव्याः ।
उक्त कथनमें नैगमके भेदोंकी सूची इस प्रकार है कि सबसे पहिले नैगमनय तीन प्रकारका माना गया है। पर्यायनैगम, द्रव्यनैगम और द्रव्यपर्यायनैगम । ये नैगमके मूलभेद तीन हैं । तिनमें पहिला भेद पर्यायनैगम तो अर्थपर्यायनैगम, व्यंजनपर्यायनैगम और अर्थव्यंजनपर्यायनैगम, इस
1