Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यचिन्तामणिः
प्रेत्यमाव, फल, दुःख, अपवर्ग, ये बारह प्रमेय हैं । एक पदार्थमें अनेक कोटिका विमर्श करना संशय है। जिसका उद्देश्य लेकर प्रवृत्ति की जाती है, वह प्रयोजन पदार्थ है। जिस अर्थमें लौकिक और परीक्षकोंकी बुद्धि समानरूपसे प्राहिका हो जाती है, वह दृष्टान्त है। शास्त्रका आश्रय लेकर ज्ञापनपन करके जिस अर्थको खीकार किया गया है, उसकी समीचीन रूपसे व्यवस्था कर देना सिद्धान्त है । वह सर्वतंत्र, प्रतितंत्र, अधिकरण, अभ्युपगम, मेदोंसे चार प्रकार है। परार्थानुमानके उपयोगी अंगोंको अवयव कहते हैं, जो कि अनुमानजन्य बोधके अनुकूल हैं। प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, ये अवयवोंके पांच मेद हैं। विशेषरूपसे नहीं जाने गये तत्त्वमें कारणोंकी उपपत्तिसे तत्त्वज्ञानके लिये किया गया विचार तर्क है । विचार कर स्वपक्ष और प्रतिपक्षपने करके अर्थका अवधारण करना निर्णय है। अपने अपने पक्षका प्रमाण और तर्कसे जहा साधन
और उलाहना हो सके, जो सिद्धान्तसे अविरुद्ध होय पांच अवयवोंसे युक्त होय, ऐसे पक्ष और प्रतिपक्षके परिप्रहको वाद कहते हैं । वादमें कहे गये विशेषणों से युक्त होता हुआ जहां छल जाति और निग्रह स्थानोंकरके स्वपक्षका साधन और परपक्षमें उलाहने दिये जाते हैं, वह जल्प है। वही जब यदि प्रतिकूलपक्षकी स्थापनासे रहित है तो वह वितंडा हो जाता है । अर्थात् -नैयायिकोंका ऐसा मन्तव्य है कि वीतराग विद्वानों या गुरुशिष्योंमें वाद प्रवर्तता है। और परस्पर एक दूसरेको जीत लेनेकी इच्छा रखनेवाले पण्डितोंमें छल आदिके द्वारा जल्प नामक शास्त्रार्थ होता है । वितंडा करनेवाला पण्डिन केवळ परपक्षका खण्डन करता है। अपने घरू पक्षकी सिद्धि नहीं करता है। हेतुके लक्षणोंसे रहित किन्तु हेतु सरीखे दीखनेवाले असद्धेतुओंको हेत्वाभास कहते हैं । नैयायिकोंने ज्यभिचार, विरुद्ध, असिद्ध, सत्प्रतिपक्ष, और बाधित, ये पांच हेत्वामास माने हैं। वादीको इष्ट हो रहे अर्थसे विरुद्ध अर्थकी कल्पना कर उसकी सिद्धि करके वादीके वचनका विघात करना प्रतिवादीका छक है। वाक्छल, सामान्य छल और उपचार छक ये तीन उसके भेद हैं। साधर्म्य और वैधर्म्य आदि करके असमाचीन उत्तर उठाते रहना जाति है । उसके साधर्म्यसमा, वैधर्म्यसमा, उत्कर्षसमा, अपकर्षसमा, वर्ण्यसमा, अवर्ण्यसमा, विकल्पसमा, साध्यप्तमा, प्राप्तिसमा, अप्राप्तिसमा, प्रसंगसमा, प्रतिदृष्टान्तसमा, अनुत्पत्तिसपा, संशयप्तमा, प्रकरणसमा, अहेतुसमा, अर्थापत्तिसमा, अविशेषसमा, उपपतिसमा, उपलन्धिसमा, अनुपलब्धि समा, नित्यसमा, अनित्यसमा, कार्यसमा ये चौवीस मेद हैं । उद्देश्य सिद्धि के प्रतिकूल शाम हो जाना अथवा उद्देश्य सिद्धि के अनुकूल हो रहे सम्यग्ज्ञानका अभाव हो जाना निग्रहस्थान है। उसके प्रकार हो रहे १ प्रतिबाहानि २ प्रतिज्ञान्तर ३ प्रतिज्ञाविरोघ ४ प्रतिज्ञासन्यास ५ हेत्वन्तर ६ अर्थान्तर ७ निरर्थक ( अविज्ञातार्थ ९ अपार्थक १० अप्राप्तकाल ११ न्यून १२ अधिक १३ पुनरुक्त १५ अननुभाषण १५ अज्ञान १३ अप्रतिमा १. विक्षेप १८ मतानुज्ञा १९ पर्यनुयोज्योपेक्षण २० निरनुयोज्यानुयोग २१ अपसिद्धान्त २२ हेत्वामास इतने निग्रहस्थान है। इस प्रकार प्रमाण आदिक सोलह पदार्थोका किन्हीं ( नैया