Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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८२.
तत्वार्थश्लोकवार्तिके
अतींद्रिय पदार्थोंको भले ही वह सर्वज्ञ जान ले, हमारी कोई क्षति नहीं है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार मीमांसकोंने सर्वज्ञके निषेध के लिये वक्र उक्ति द्वारा निंद्य प्रयत्न किया है। दूसरोंके अपशकुनके लिये अपनी आंखको फोड लेने के समान यह मीमांसकोंका घृणास्पद व्यवहार है। दूसरीबात यह है कि इस प्रकार मीमांसकोंके उक्त कथनसे यह भी प्रतीत होता है कि सर्वज्ञको न मान में मीमांसक जब निन्दा या तिरस्कार नहीं समझते हैं, और सर्वज्ञका अनादर भी नहीं करते हैं। क्योंकि वे स्वयं कहते हैं कि अन्य सभी पदार्थोंको विशेषरूपसे जान रहा वह पुरुष विशेष सर्वज्ञ तो किसीकरके भी नहीं निषेधा जा रहा है, इस कारण हम जैनसिद्धान्तिओंका उस मीमांके प्रति अति अधिक आदर नहीं है । अर्थात् धर्मके अतिरिक्त सभी पदार्थोंका प्रत्यक्ष तो मीमांसक मानता नहीं है। अवशेष बचे धर्म के प्रत्यक्ष करलेने की सिद्धि सुलभतासे करायी जा सकती है। परमार्थतस्तु न कथमपि पुरुषस्यातींद्रियार्थदर्शनातिशयः सम्भाव्यते सातिशयानामपि प्रज्ञामेधाभिः स्तोकस्तोकान्तरत्वेनैव दर्शनात् । तदुक्तं " येऽपि सातिशया दृष्टाः प्रज्ञामेधादिभिर्नराः । स्तोकस्तोकान्तरत्वेन नत्वतींद्रिय (ज्ञान) दर्शनात् ॥ " इति कश्चित्तं प्रति विज्ञानस्य परमप्रकर्षगमन साधनवाह ।
सर्वज्ञको नहीं माननेवाला कोई विद्वान् कह रहा है कि परमार्थरूपसे देखा जाय तब तो इस अल्पज्ञ पुरुष के अतींद्रिय अर्थोके विशद प्रत्यक्ष कर लेनेका अतिशय (चमत्कार ) कैसे भी नहीं सम्भवता । जो भी कोई पुरुष विचारशालिनी बुद्धि या धारणायुक्त बुद्धि अथवा नवनव उन्मेषशालिनी प्रतिभा बुद्धिकरके अतिशय सहित हो रहे हैं, उनके भी छोटे या उससे भी छोटे पदार्थों का ज्ञान कर लेनेसे ही विशेष चमत्कार दीखता है । वे इन्द्रियों के अविषयको नहीं जान सकते हैं । सो ही हमारे यहां " मीमांसाको कार्तिक " में कहा जा चुका है कि जो भी कोई विद्वान् प्रज्ञा, मेत्रा, प्रेक्षा, आदि विशेषज्ञानों करके चमत्कारसहित देखे गये हैं, वे भी छोटा और सबसे छोटा आदिक इन्द्रिय गोचर पदार्थों के जाननेसे ही वैसे अन्य विद्वानोंमें बढे चढे हुये समझे जाते हैं । किन्तु अतीन्द्रिय पदार्थोंके दर्शनसे वे चमत्कारयुक्त नहीं हैं | असम्भव पदार्थों को कर देने में चक्रवर्ती, अहमिन्द्र, जिनेन्द्र किसीको भी प्रशंसापत्र अद्यापि नहीं मिला है, जब कि वे अश्वविषाणके समान किये ही नहीं जासकते हैं । ast भारी भी विद्वान् पुरुष सजातियोंका अतिक्रमण नहीं करता हुआ दो अन्य मनुष्योंसे चमत्कार धार सकता है । उपनेत्र ( चश्मा ) या दुरवीनकी सहायता से चक्षुद्वारा छोटे या दूरवर्ती पदार्थों को ही देखा जा सकता है। परमाणुको नहीं देखा जा सकता है। तथा अच्छी आंखोंवाला पुरुष दूरवर्ती पदार्थोंकी गन्ध या स्पर्शको आंखोंसे नहीं जान सकता है। बडा भारी वैयाकरण भी विद्वान् ज्योतिष शास्त्र के सूक्ष्म रहस्यों को नहीं जान सकता है। इसी प्रकार सर्वज्ञ भी इन्द्रियोंके अगोचर पदार्थोका प्रत्यक्ष नहीं कर सकता है । हो, अपौरुषेय आगमसे अतीन्द्रिय पदार्थोंको