Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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ततः समन्ततश्चक्षुरिन्द्रियाद्यनपेक्षिणः । निःशेषद्रव्य पर्यायविषयं केवलं स्थितं ॥ ३९ ॥
तिस कारण से यह व्यवस्थित होगया कि चारों ओरसे चक्षु इन्द्रिय, मन, ज्ञापकहेतु, अर्थापत्ति, उत्थापक अर्थ, वेदवाक्य आदिककी नहीं अपेक्षा रखनेवाले आवरणरहित जविके सम्पूर्ण द्रव्य और सम्पूर्ण पर्यायोंको विषय करनेवाला केवलज्ञान प्रकट हो जाता है । केवलज्ञान के सद्भावमें बाधा देनेवाले प्रमाणोंका असम्भव है ।
तदेवं प्रमाणतः सिद्धे केवलज्ञाने सकलकुवाद्यविषये युक्तं तस्य विषयप्ररूपणं मतिज्ञानादिवत् ।
तिस कारण सम्पूर्ण कुचोध करनेवाले वादियोंकी समझमें नहीं आरहे केवलज्ञानकी प्रमाणोंसे इस प्रकार सिद्धि हो चुकनेपर उस केवलज्ञानके मतिज्ञान आदिके समान विषयका क्रमप्राप्त निरूपण करना श्री उमास्वामी महाराजको युक्त ही है । यहांतक प्रकृत सूत्रकी उपपत्ति करदी गयी है ।
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इस सूत्र का सारांश |
इस सूत्र के प्रकरणोंकी संक्षेपसे सूची इस प्रकार है कि प्रथम ही चार ज्ञानोंके विषयका निरूपण कर चुकनेपर क्रमप्राप्त केवलज्ञानके विषयको नियत करनेके लिये सूत्रका निरूपण करन आवश्यक प्रतीत हुआ है, सकल ज्ञेयोंमें वहीं बैठे बैठे इतिक्रिया कराने की अपेक्षा व्यापनेवाले halको पूर्ण प्रकरणों में साधा जा चुका कहकर अनेक द्रव्य और अनेक पर्यायके सद्भावका स्मरण कराया है। तभी तो श्री उमास्वामी महाराजने द्रव्य और पर्यायोंमें बहुवचनान्त प्रयोग किया है। केवल उपयोगमें आ रहे या संसार और मोक्षतत्व के ज्ञानमें उपयोगी बन रहे थोडेसे पदार्थों को ही जान लेने मात्रसे सर्वज्ञ नहीं हो सकता है । इस तत्त्वका अच्छा विचार किया है । हेय और उपादेय कतिपय तत्वोंको जान लेनेसे भी सर्वज्ञपना इष्ट नहीं है। इस प्रकरणमें अपेक्षाओं से सभी पदार्थों का यपना या उपादेयपना अथवा उपेक्षा करने योग्यपना भले प्रकार साधा है । सिद्धान्त यह है कि जगत् के सम्पूर्ण पदार्थोंको जान लेनेपर ही सर्वज्ञता बन सकती है। एक भी पदार्थ छूट जाने पर अल्पक्षता समझी जावेगी । धर्मसे अतिरिक्त अन्य सम्पूर्ण पदार्थोंको जाननेवाला धर्मको अवश्य जान जावेगा । ज्ञानका स्वभाव सम्पूर्ण पदार्थोंको जाननेका है। ऐसी दशामें धर्म शेष नहीं रह सकता है । विचारशाली पुरुषोंको नीतिमार्गका उल्लंघन नहीं करना चाहिये । यहाँ मीमांसकोंके साथ बहुत अच्छा विचार कर सर्वज्ञसिद्धि की है । अनुमान बनाकर ज्ञानके परमप्रकर्ष पर्यन्त गमनको समीचीन हेतुसे साथ दिया है। मीमांसकों के द्वारा उठाये गये कुचोधोंका अच्छे ढंगसे निवारण कर दिया है । नास्तिक और मीमांसकके प्रति न्यारी न्यारी प्रतिज्ञा कर सिद्ध