Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
विशुद्धियों के विभिन्न परिवर्तन हो जानेसे अवधिज्ञान अनवस्थित हो रहा मी एकरूप करके अवस्थान हो जानेसे अवस्थित माना जाता है। हां, फिर दृढ उपयोगपना न होनेके कारण स्वभावका परिवर्तन होते हुये भी अवस्थितपना नहीं है । उस अवधिज्ञानको तिस तिस प्रकार अनुगामी होना, अननुगामी होना, बढना, घटना होनेपर भी दृढ उपयोगपनेका कोई विरोध नहीं है । अतः विपर्यय या अनध्यवसायको अवस्थामें भी अवस्थित नामका पांचवां भेद अवधिज्ञान में घटित हो जाता है ।
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कुतः पुनस्त्रिष्वेव बोधेषु मिथ्यात्वमित्याह ।
कोई शिष्य जिज्ञासा करता है कि फिर यह बताओ कि तीनों ही ज्ञानोंमें मिध्यापना किस कारण से हो जाता है ! ऐसी जानने की इच्छा होनेपर श्री विद्यानन्दस्वामी वार्तिक द्वारा परिभाषित अर्थको कहते हैं ।
मिथ्यात्वं त्रिषु बोधेषु दृष्टिमोहोदयाद्भवेत् ।
तेषां सामान्यतस्तेन सहभावाविरोधतः ॥ १४ ॥
मति, श्रुत, अवधि, इन तीनों ज्ञानों में मिध्यापना दर्शनमोहनीय कर्मके उदयसे सम्भवजाता है । क्योंकि सामान्यरूपसे उन तीनों ज्ञानोंका उस मिध्यात्वके साथ सद्भाव पाये जानेका कोई विरोध नहीं है । मावार्थ – पण्डितका कारणवश मूर्ख होजाना, धनीका निर्धन बन जाना, नीरोग जीवका रोगी हो जाना, इत्यादि प्रयोग लोकमें प्रसिद्ध हैं । यह कथन सामान्य अपेक्षा सत्य है । यानी जिस मनुष्यको हम आजन्म सामान्यरूपसे पण्डित मान चुके थे, वह मध्य में ही किसी तीघ्र असदाचार, उन्मत्तता, शोक, महतीचिन्ता, कुप्रभाव, मन्त्र अनुष्ठान आदि कारणोंसे मूर्ख बन गया । ऐसी दशा में पण्डितको मूर्खपनका विधान कर दिया जाता है। विशेषरूपसे विचारनेपर तो जब मूर्ख है, तब पण्डित नहीं है, और जब पण्डित था तब मूर्ख नहीं था । अतः उक्त प्रयोग नहीं बनता है । ऐसे ही सेठ निर्धन होगया, नीरोगी रोगी होगया, कुछीन अकुलीन होगया, सबळ निर्बल होगया, अथवा रागी वीतराग हो जाता है, बद्ध मुक्त हो जाता है इत्यादि स्थलों पर भी लगा लेना । बात यह है कि प्रकृत सूत्र अनुसार सामान्यरूपसे उद्दिष्ट किये गये तीन ज्ञानोंमें विपर्ययपनेका विधान करना चाहिये, विशेषरूप से नहीं ।
यदा मत्यादयः पुंसस्तदा न स्याद्विपर्ययः । स यदा ते तदा न स्युरित्येतेन निराकृतम् ॥ १५ ॥
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कोई एकान्तवादी विद्वान् निश्चयनयकी कथनों के समान यों वखान रहा है कि जिस समय आत्माओंके मति, झुल, अवधि, ज्ञान हैं ( जो कि समीचीन होते हुए सम्यकदृष्टियोंके ही