Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
वर्षों में भले ही नहीं बिगडे, किन्तु हजारों, लाखों, वर्षों में सोना या भुड भुड ( भोडळ अभ्रक ) भी मट्टी, कीचड, हो सकता है। नोनकी झीलमें सभी पुद्गल स्कन्ध नोंन हो जाते हैं । कोई मी पुद्गलकी पर्याय निमित्त मिल जानेपर कुछ कालमें अन्य पुद्गल पर्यायोरूप परिवर्तन कर जाती है। शुद्ध सौ टंचका सोना भी औषधियोंके प्रयोगसे अग्नि द्वारा भस्म कर दिया जाता है । वैध पुरुष अभ्रकको भी भस्म बनाते हैं । अतः अधिकरणके दोष कचित् आधेयमें मा जाते हैं । " पेटमें पांडा और आंखमें औषधि " यह लौकिक परिभाषा कुछ रहस्य रखती है।
यथा सरजसालाम्बूफलस्य कटु किन्न तत् । क्षिप्तस्य पयसो दृष्टः कटुभावस्तथाविधः ॥ १९ ॥ तथात्मनोऽपि मिथ्यात्वपरिणामे सतीष्यते ।
मत्यादिसंविदां तादृमिथ्यात्वं कस्यचित्सदा ॥२०॥
जिस प्रकार कडवे गूदकी धूलसे सहित हो रहे तुम्बी फलके कटुपनेसे क्या उस पात्रमें डाल दिये गये दूधका तिस प्रकार कडवा हो जाना नहीं देखा गया है ! अर्थात्-कडवी तूम्बरीमें रखा हुवा दूध भी कडवा हो जाता है। निमित्त द्वारा विभाव परिणामको प्राप्त हो जानेवाले आधेयमें विभावक अधिकरणके दोष आ जाते हैं । खर्ग और नरकके आकाशमें यद्यपि कोई अन्तर नहीं है। फिर भी वहांकी वायु, भूमि, आदिमें महान् अन्तर है। यही बात सिद्धक्षेत्र
और युद्धक्षेत्रमें लगा लेना । अतः जिस प्रकार कडवी तूम्बीमें रखा हुवा दूध कटु हो जाता है, तिसी प्रकार किसी आत्माके भी मिथ्याव परिणाम हो जानेपर मति आदिक ज्ञानोंका तिस प्रकार मिथ्या हो जानापन सदा इष्ट कर लिया जाता है । असदाचारी पुरुषकी. पण्डिताईमें भी वह दूषण घुस रहा है। सुदर्शन, सीता आदि महान् आत्माओंके ब्रह्मचर्य गुणकी निर्दोषता अन्य सत्य, अचौर्य, अहिंसा, नवकोटिविशुद्धि, साहस, धैर्य, आदि करके परिपूर्ण हो जानेसे गरिष्ठ मानी गयी है, जिसको कि केवळ कृत या कारितसे ही अकेले ब्रह्मचर्यको धारनेवाळे असंख्य स्त्रीपुरुष नहीं प्राप्त कर सके हैं।
जात्यहेम्नो माणिक्यस्य चाग्न्यादिर्वा गृहादिर्वा नाहेमत्वममाणिक्यत्वं वा कर्नु समर्थस्तस्यापरिणामकत्वात् । मिथ्यात्वपरिणतस्तु आत्मा स्वाश्रयीणि मत्यादिज्ञानानि विपर्ययरूपतामाषादयति । तस्य तथा परिणामकत्वात्सरजसकटुकालाम्बूवत्स्वाश्रयि पय इति न मिथ्यात्वसहभावेऽपि मत्यादीनां सम्यक्त्वपरित्यागः शङ्कनीयः।
किट्ट, ( कीट ) कालिमा, चांदी, तांबा, आदि टंटोंसे रहित होरहे स्वच्छ सोने का अग्नि, कीचड, वायु अथवा पानी आदिक पदार्थ असुवर्णपना करने के लिये समर्थ नहीं हैं । अथवा माणिक