Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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जो हेतु या साध्यसे विपरीत अर्थके साथ व्याप्तिको रखता है, वह विरुद्ध हेत्वाभास समझना चाहिये । तिस ही प्रकार विरुद्धके साथ व्याप्त होनेके कारण वह हेतु इष्ट साध्यका विघात कर देता है । जैसे कि स्याद्वादका विशेष द्वेष करनेवाले बौद्धोंके द्वारा क्षणिकपन, असाधारणपन आदिको साधने में प्रयुक्त किये गये सत्व प्रमेयत्व आदिक हेतु विरुद्ध हैं। क्योंकि उन सत्व आदि हेतुओं करके नियमसे नित्य अनित्यरूप या सामान्य विशेषरूप अनेक धर्म आत्मकपनेकी सिद्धि होती है । जतः अमीष्ट साध्य हो रहे सर्वथा क्षणिकपनके विपरीत कथंचित् क्षणिकपनके साथ व्याप्ति रखने वाळा होनेसे सखहेतु विरुद्ध है । विरुद्ध हेतु प्रायः व्यभिचार दोषवाले भी भळे प्रकार निश्चित हो रहे हैं। व्यभिचार और विरुद्धका भाईचारेका नाता है। विपक्षमें रहना व्यभिचार है । साध्यसे विपरीत के साथ व्याप्ति रखनेवाला विरुद्ध है । अतः अनेक स्थलोंपर इन दोनों हेत्वाभासोंका सांकर्य हो जाता है ।
सामर्थ्यं चक्षुरादीनां संहतत्वं प्रसाधयेत् । परस्य परिणामित्वं तथेतीष्टविघातकृत् ॥ ४५ ॥ अनुस्यूतमनीषादिसामान्यादीनि साधयेत् । तेषां द्रव्यविवर्त्तत्वमेवमिष्टविघातकृत् ॥ ४६ ॥ विरुद्धान्न च भिन्नोऽसौ स्वयमिष्टाद्विपर्यये । सामर्थ्यस्याविशेषेण भेदवादिप्रसंगतः ॥ ४७ ॥
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चक्षु, रसना आदि इन्द्रियोंका संहतपना हेतु उनकी सामर्थ्यको भले प्रकार सिद्ध कर देवेगा, इस प्रकार कापिकोंद्वारा मानी गयीं ग्यारह इन्द्रियोंका दृढरूपसे मिल जाना आत्माकी सामर्थ्यको साता है, यह ठीक है । इन्द्रियां जो कार्य कर रही है वह आत्माकी सामर्थ्य से कर रही है । किन्तु ऐसी दशा में दूसरे सांख्योंकी आत्मका परिणामीपन भी सिद्ध हो जावेगा । किन्तु सांख्योंने आमाको कूटस्थ माना है । अतः तिस प्रकार अनुमान करनेपर वह हेतु सांख्योंके इष्ट हो रहे कूटस्थपनका विघात कर देता है । तथा अन्ययरूपसे ओत पोत हो रहीं बुद्धि आदिके सामान्य बेतनपन आदिको भी वह संहतपना हेतु साध देवेगा । वे बुद्धि, सुख आदिक स्वभाव आत्मद्रव्यके ही पर्याय हैं । अतः सांख्यों के इष्टसिद्धान्तका विघात करनेवाला वह हेतु हुआ । तिस कारण स्वयं सांख्यको इष्ट हो रहे साध्यसे विपर्ययको साधने में अभिमुख हो रहा वह हेतु विरुद्धहेत्वाभाससे मित्र नहीं है । जिस पदार्थकी सामर्थ्यका परिवर्तन होता रहता है, वह पदार्थ परिणामी है । सामर्थ्य और सामर्थ्यवान् में कोई विशेषता नहीं है । यदि शक्ति और शक्तिमान् में भेद माना जायगा तो आप सांख्योंको
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