Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
नहीं मान सकेंगे। क्योंकि किसी भी एक प्रमाणसे अर्थके प्रसिद्ध हो चुकनेपर अन्य प्रमागोंका व्यर्थपना प्राप्त होता है।
मानेनैकेन सिद्धेथें प्रमाणांतरवर्तने । यानवस्थोच्यते सापि नाकांक्षाक्षयतः स्थितेः ॥ ५॥ सरागप्रतिपत्तॄणां खादृष्टवशतः कचित् । स्यादाकांक्षाक्षयः कालदेशादेः स्वनिमित्ततः ॥८६॥
यदि जैनोंके एकदेशी यों कहें कि एक प्रमाणकरके पदार्थके सिद्ध हो जानेपर पुनरपि यदि अन्य प्रमाणोंकी प्रवृत्ति मानी जायगी तो अनवस्था दोष होगा। दूसरे, तीसरे, चौथे, आदि प्रमाणोंके प्रवर्तनेकी जिज्ञासा बढती ही चली जायगी । इसके उत्तरमें श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं कि तुमने जो अनवस्था दोष कहा है, वह भी बाकांक्षाओंका क्षय हो जानेसे नहीं आता है। यह व्यवस्थित सिद्धान्त है। जबतक वाकांक्षा बढती जायगी तबतक प्रमाणोंको उठाते जायेंगे । निराकांक्ष होनेपर प्रमाता वहीं अवस्थित हो जावेगा । रागसहित या इच्छासहित प्रतिपत्ताजनोंको अपने अदृष्टके वशसे कहीं दो, चार, छः, कोटि चळकर आकांक्षाका क्षय हो जायगा । अर्थात्-जैसे अत्यन्त प्रिय पदार्थ के वियोग हो जानेपर उसकी स्मृतियां हमको सताती रहती हैं । पश्चात् हमारे सुख दुःखोंके भोग अनुकूल पुण्यपापोंकरके वे स्मृतियां प्रायः नष्ट हो जाती हैं। यदि वे स्मृतियां या आकांक्षायें नष्ट नहीं होय तो जीवित रहना या अन्य कार्योको करना ही अति कठिन होजाय । बडे अच्छे कारण मिल जाते हैं, जिनसे कि वे सटिति विलीन हो जाती है, तथैव अन्योंको जानना है अथवा अन्य सुख दुःखोंको भी भोगना है, बादिके कारण हो रहे स्वकीय अदृष्टसे एक ही ज्ञेयमें बढ रही जिज्ञासाओंका नाश कर दिया जाता है। तथा कहीं कहीं अपनी आकांक्षाश्चयके निमित्तकारण काड, देश, विषयांतर संचार विस्मारकपदार्थ सेवन, मनकी अनेकाप्रता, प्रकृति ( मस्ताना आदत ) आदिकसे भी आकांक्षाका क्षय हो जाता है। कर्तृवादी नैयायिक तो बढती हुयी आकांक्षा या अनवस्थाका क्षय करते रहना इस कार्यको दयातु ईश्वरके हाथ सोंप देते हैं । किन्तु कृतकृत्य मुक्तसे यह कार्य कराना अनेक दोषास्पद है।
वीतरागाः पुनः स्वार्थान वेदनरपरापरैः। प्रतिक्षणं प्रवर्तते सदोपेक्षापरायणाः ॥८७ ॥
आकांक्षाका क्षय हो जानेसे रागी ज्ञाताओंको तो अब अनवस्था हो नहीं सकती है। हो, फिर उपर उत्तर काळमें होनेवाले बानोंकरके स्व और बोंको जान रहे वीतराग पुरुष तो सर्वदा