Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
विपक्षे बाधके वृत्ति समीचीनो यथोच्यते । साधके सति किन्न स्यात्तदाभासस्तथैव सः ॥ ७६ ॥
विपश्व में बाधकप्रमाणके प्रवृत्त हो जानेपर जैसे कोई भी हेतु समीचीन हेतु कहा जाता है, तिस ही प्रकार विपक्ष में साधकप्रमाणके होनेपर वह हेतु हेत्वाभास क्यों नहीं हो जावेगा ? साध्याभावे प्रवृत्तेन किं प्रमाणेन बाध्यते ।
हेतुः किं वा तदेतेनेत्यत्र संशीतिसम्भवः ॥ ७७ ॥ साध्यस्याभाव एवायं प्रवृत्त इति निश्चये । विरुद्ध हेतुरुद्भाव्योऽतीतकालो न चापरः ॥ ७८ ॥
साध्यका• अभाव होनेपर प्रवृत्त हो रहे प्रमाण करके क्या यह हेतु बाधा जारहा है !
साध्यके
अथवा क्या इस हेतु करके वह प्रमाण बाधा जारहा है ! इस होय ऐसी दशा में वह संदिग्धव्यभिचारी है। हां, होनेपर ही यह हेतु प्रवर्त्ता है, इस प्रकार निश्वय करना चाहिये । अतः व्यभिचारी या विरुद्धसे भिन्न नहीं है, जो कि " कालात्ययापदिष्टः कालातीतः "
प्रकार यहां संशय होना सम्भवता नहीं होनेपर किन्तु साध्यका अभाव हो जानेपर तो विरुद्ध हेत्वाभासका उद्भावन कोई कालातीत ( बाधित ) नामका हेत्वाभास
कहा जाय ।
प्रमाणबाधनं नाम दोषः पक्षस्य वस्तुतः । क तस्य हेतुभिस्त्राणोऽनुत्पन्नेन ततो हतः ॥ ७९ ॥
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वस्तुतः विचारा जाय तो साध्यका लक्षण इष्ट, अवाधित और असिद्ध किया गया है । अतः साध्यवान् पक्षका दोष प्रमाणबाधा नामका हो सकता है। हेतुके दोषोंमें बाधितकी गणना करना उचित नहीं है । उस कालात्ययापदिष्टका हेतुओं करके मळा रक्षण कहाँ हो सकता है ? तिस कारण हेतुओंमें उत्पन्न नहीं होनेसे वैशेषिकोंका सिद्धान्त नष्ट हो जाता है । अर्थात्वह दोष देतुमें उत्पन्न ही नहीं हो सकता है ।
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-साध्यका
सिद्धे साध्ये प्रवृत्तोऽत्राकिंचित्कर इतीरितः । कैविद्धेतुर्न संचिंत्यः स्याद्वादनयशालिभिः ॥ ८० ॥ गृहीतग्रहणात्तस्याप्रमाणत्वं यदीष्यते । स्मृत्यादेरप्रमाणत्वप्रसंग ः केन वार्यते ॥ ८१ ॥