Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
१९८
तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
हो सकता है । शिष्यकी अपेक्षा नहीं रखकर अध्ययन करनेकी प्रेरणा करना कठिनतासे मी समझने योग्य नहीं है । अतः सम्बन्धियों के साथ सम्बन्धका भेद अथवा अमेद इन दोनों पक्षों में नियोगकी व्यवस्था नहीं बन सकी।
तत्समुदायनियोगवादोप्यनेन प्रत्याख्यातः । कार्यप्रेरणास्वभावनिर्मुक्तस्तु नियोगो न विधिवादमतिशेते।
उन कार्य और प्रेरणाका परस्पर अविनाभूत होकर तदात्मक समुदाय होजाना नियोग है। यह नियोगवादियोंका सातवां पक्ष भी इस सम्बन्धवाले कथनसे ही निगकृत कर दिया जाता है । क्योंकि पुरुषके विना उन दोनों के समुदायको नियोग कहना उचित नहीं है । कार्य और प्रेरणास्वभावोंसे सर्वथा विनिर्मुक्त हो रहा नियोग तो विधिवादसे अधिक अतिशय धारी नहीं है। क्योंकि तुच्छ अभावको नहीं माननेवाले प्राभाकरोंके यहां कार्य और प्रेरणा स्वभावोंसे रहित हो रहा नियोग तो हमारी मानी हुयी विधिक सदृश ही पडेगा।
यत्पुनः स्वर्गकामः पुरुषोग्निहोत्रादिवाक्यनियोगे सति यागलक्षणं विषयमारूढमात्मानं मन्यमानः प्रवर्तत इति यंत्रारूढनियोगवचनं तदपि न परमात्मवादप्रतिकूलं, पुरुषाभिमानमात्रस्य नियोगत्ववचनात् तस्य चाविद्योदयनिबंधनत्वात् । भोग्यरूपो नियोग इति चायुक्तं, नियोक्तृप्रेरणाशून्यस्य भोग्यस्य तदभावानुपपत्तेः।
विधिवादी ही अपने मन्तव्यको बखाने जा रहे हैं कि जो फिर नौवें पक्षके अनुसार नियोग वादियोंने यों कहा था कि स्वर्गकी अभिलाषा रखनेवाला पुरुष आग्निहोत्र आदि वाक्यद्वारा नियोग प्राप्त होनेपर यागस्वरूप विषयके ऊपर आरूढ हो रहे अपनेको मान रहा संता प्रवर्त रहा है । इस प्रकार यंत्रासढस्वरूप नियोग है । सो यह उसका कथन भी परमब्रह्म वादके अनुकूल है। प्रतिकूल नहीं है । क्योंकि पुरुषपनेका केवल अभिमान करनेको नियोगपना कहा गया है और वह अभिमान तो अविद्याके उदयको कारण मानकर होगया है, यही हम विधिवादियोंका मन्तव्य है। दशवें पक्षके अनुसार भविष्य काळमें भोगने योग्य पदार्थस्वरूप नियोग है, यह कहना भी युक्ति रहित है । क्योंकि नियोक्ता पुरुष और प्रेरणासे शून्य हो रहे भोग्यको उस नियोगपनकी उपपत्ति नहीं हो सकती है।
पुरुषस्वभावोपि न नियोगो घटते, तस्य शाश्वतिकत्वेन नियोगस्य शाश्वतिकत्वमसंगात् । पुरुषमात्रविधेरेव तथा विधाने वेदांतवादिपरिसमाप्तेः । कुतो नियोगवादो नामेति ?
ग्यारहवें पक्ष अनुसार पुरुषस्वभाव माना जारहा नियोग भी नहीं घटित होता है । क्योंकि वह पुरुष तो नित्य है। इस कारण नियोगको भी नित्यपना हो जानेका प्रसंग होगा। जब कि