Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
तुम्हारे यहां केवळव्यतिरेकी माने गये हैं। किन्तु पुरुषकरके तथा प्रकृति और भारमा करके भी थे हेतु व्यभिचारी इष्ट किये गये हैं। मतः अनेकान्तिकका पूर्वोक्त लक्षण ठीक नहीं है।
विना सपक्षसत्त्वेन गमकं यस्य साधनम् । अन्यथानुपपन्नत्वात्तस्य साधारणो मतः ॥ ६०॥ साध्ये च तदभावे च वर्तमानो विनिश्चितः। संशीत्याक्रान्तदेहो वा हेतुः कात्स्न्यैकदेशतः ॥ ६१॥
सपक्ष यानी अन्वयदृष्टान्तमें विद्यमान रहनेके विना मी हेतु जिस स्याद्वादीके यहां मात्र अन्यथानुपपत्ति नामका गुण होनेसे साध्यका ज्ञापक मानलिया गया है, उसके यहां साध्यके होनेपर और विपक्षमें उस साध्यका अभाव होनेपर वर्तमान हो रहा हेतु साधारण नामका हेत्वाभास विशेष रूपसे निषित किया गया है। अथवा पक्षमें साध्यके रहनेपर रहनेवाला और साध्यामाववाले विपक्षमें पूर्णरूपसे या एक देशसे वर्तनेके संशय करके घिरे हुये शरीरवाला हेतु साधारण (संदिग्धव्यभिचारी ) है।
तत्र कात्स्न्येन निर्णीतस्तावत्साध्यविपक्षयोः । यथा द्रव्यं नमः सत्त्वादित्यादिः कश्चिदीरितः ॥ ६२॥
उन साधारण हेत्वामासके भेदोंमेंसे पहिला साध्यवान् पक्ष और साध्याभाषवान् विपक्षमें पूर्ण रूपसे निणीत होकर वर्त रहा कोई हेतु तो यों कहा गया है कि जैसे नाकाश ( पक्ष ) द्रश्य है (साध्य ), सत्पना होनेसे (हेतु )। इस अनुमानमें दिया गया सत्व हेतु अपने पक्ष आकाशमें वर्तता है और विपक्ष गुण या कर्ममें भी वर्त रहा है अथवा शब्द ( पक्ष ) अनित्य है ( साध्य ), प्रमेयपना होनेसे ( हेतु ) इत्यादि हेतु विपक्षमें पूर्णरूपसे वर्तते हुए निश्चित व्यभिचारी है।
विश्ववेदीश्वरः सर्वजगतकर्तृत्वसिद्धितः । इति संश्रयतस्तत्राविनाभावस्य संशयात् ॥ ६३ ॥ सति ह्यशेषवेदित्वे संदिग्धा विश्वकर्तृता। तदभावे च तन्नायं गमको न्यायवेदिनाम् ॥ ६४॥
ईश्वरं ( पक्ष ) सर्वज्ञ है ( साध्य ), सम्पूर्ण जगत्के कर्त्तापनकी सिद्धि होनेसे ( हेतु ) । इस प्रकार अनुमानका अच्छा मामय करनेवालेके यहां उस हेतुमें अविनामावका संशय हो जानेसे
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