Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तरवार्य लोकवार्तिके
भेदवादी नैयायिक या वैशेषिक हो जानेका प्रसंग होगा । अतः चक्षु आदिकोंकी नित्य सामर्थ्यको साधनेवाला संतपना हेतु विरुद्धहेत्वाभास है । न्यायशास्त्र के अन्तस्तकको जाननेवाले विशेषज्ञ विद्वान् यहां अर्थको परिशुद्ध कर देवें । मैंने अपनी लघुबुद्धिद्वारा क्षयोपशम अनुसार वाक्योंका उपस्कार कर अर्थ लिख दिया है ।
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विवादाध्यासितं धीमद्धेतुकं कृतकत्वतः ।
यथा शकटमित्यादिविरुद्धो तेन दर्शितः ॥ ४८ ॥ यथा हि बुद्धिमत्पूर्वं जगदेतत्प्रसाधयेत् । तथा बुद्धिमतो तोरनेकत्वशरीरिताम् ॥ ४९ ॥ स्वशरीरस्य कर्त्तात्मा नाशरीरोऽस्ति सर्वथा । कार्मणेन शरीरेणानादिसम्बन्धसिद्धितः ॥ ५० ॥ यतः साध्ये शरीरे स्वे धीमतो व्यभिचारता । जगत्कर्तुः प्रपद्येत तेन हेतोः कुतार्किकः ॥ ५१ ॥ कान्तिको हेतुसम्भवान्नान्यथा तथा ।
संशीतिं विधिवत्सर्वः साधारणतया स्थितः ॥ ५२ ॥
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ईश्वरको जगत्का कर्त्ता माननेवाले वैशेषिकोंका अनुमान है कि घडा, वस्त्र किवाड आदि का तो चेतनकर्ता प्रसिद्ध ही है । किन्तु विवाद में प्राप्त हो रहे पृथ्वी, पर्वत, शरीर, सूर्य, चंद्रमा आदि पदार्थ भी ( पक्ष ) बुद्धिमान चेतनको हेतु मानकर उत्पन्न हुये हैं (साध्य ), अपनी उत्पत्ति में दूसरोंके व्यापारकी अपेक्षा रखनेवाले कृतकभाव होनेसे ( हेतु ), जैसे कि गाडी ( अम्बयदृष्टान्त ) | आचार्य कहते हैं कि इस प्रकारके उस नैयायिक या वैशेषिकद्वारा दिये गये अन्य भी कार्यव
चेतनोपादानत्व, आदिक हेतु विरुद्वहेत्वाभास दिखला दिये गये हैं। क्योंकि उक्त हेतु अपने अभीष्ट बुद्धिमान कर्तापनेसे विपरीत कारणमात्र जन्यत्व के साथ व्याप्तिको धारते हैं । आप विचारिबे कि जिस प्रकार वह हेतु इन जगत्को बुद्धिमान कारणले जन्यपना भले प्रकार सावेगा, उसी प्रकार घट, पट, गाडी आदि दृष्टान्तोंकी सामर्थ्य से उस बुद्धिमान् कारणके अनेकपन और शरीरसहितपन को मी साधेगा, जो कि नैयायिकों को इष्ट नहीं है । पहिले अन्य शरीरसे सहित होता हुआ ही आत्मा अपने शरीरका कर्ता होता है। शरीरसे रहित मुक्तात्मा तो सभी प्रकारोंसे अपने शरीरका क