Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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... तत्त्वार्थखोकवार्तिके
रस्नके अमाणिक्यपनेको करने के लिये शूद्रगृह, मूर्ख, भीलनीकी कुटी, डिन्बी, वस्त्र, आदिक पदार्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि उन बग्नि आदिक या गृह आदिकको सुवर्ण या माणिक्यके विपरिणाम करानेके निमित्त शक्ति प्राप्त नहीं है । इससे आचार्य महाराजका यह अभिप्राय पनित होता है कि जो पदार्थ सोने या माणिक्यको अन्यथा कर सकते हैं, उनके द्वारा सोना या माणिक मी राख या चूना हो जाता है। हां, आकाश आदि शुद्धद्रव्योंका अन्यथाभाव किसीके बल, बूते, नहीं हो पाता है। किन्तु मिथ्यादर्शन परिणामसे युक्त हो रहा आत्मा तो अपने आश्रयमें वर्त रहे मति, श्रुत, आदि बानोंको विपर्यय स्वरूपपनेको प्राप्त करा देता है । क्योंकि उस मिथ्याटि आत्माको तीन ज्ञानोंकी तिस प्रकार कुहानरूप परिणति करानेमें प्रेरक निमित्तपना प्राप्त हैं । जैसे कि कडवे गूदेकी धूळसहित हो रही कडवी तूम्बी अपने आश्रय प्राप्त हो रहे दूधको कडवे रस सहितपनेसे परिणति करादेती है। इस कारण मिथ्यादर्शनका सहभाव होजानेपर भी मति मादिक बानोंके समीचीनपनेका परित्याग हो जाना शंका करने योग्य नहीं है। तुच्छ पुरुषके अन्य गुण भी तुच्छ हो जाते हैं। गम्भीर नहीं रहते हैं। एक गुण या दोष दूसरे गुण या दोषोंपर जयश्य प्रभाव डालता है। प्रकाण्ड विद्वान् यदि पूर्ण सदाचारी भी है तो वह परमपूज्य है।
परिणामित्वमात्मनोऽसिद्धमिति चेदत्रोच्यते ।
कोई एकान्ती कहता है कि आत्मामें यदि कुमतिज्ञान है, तो सुमतिबान फिर नहीं हो सकेगा और यदि आत्मामें सुमतिज्ञान है तो फिर आत्मा कुमतिज्ञानरूप विपरिणति नहीं कर सकता है। क्योंकि आत्मा कूटस्थ नित्य है । परिवर्तन करनेवाले परिणामोंसे सहितपना तो आत्माके भसिद्ध है। इस प्रकार किसी प्रतिवादीके कहनेपर इस प्रकरणमें श्री विद्यानन्द भाचार्य द्वारा समाधान कहा जाता है। उसको सावधान होकर सुनिये ।
न चेदं परिणामित्वमात्मनो न प्रसाधितम् । सर्वस्यापरिणामित्वे सत्त्वस्यैव विरोधतः ॥ २१ ॥ यतो विपर्ययो न स्यात्परिणामः कदाचन । मत्यादिवेदनाकारपरिणामनिवृत्तितः ॥ २२ ॥
मात्माका यह परिणामीपना हमने पूर्व प्रकरणोंमें भळे प्रकार साधा नहीं है, यह नहीं समझना । यानी मामा परिणामी है, इसको हम अच्छी युक्तियोंसे साध चुके
। जैनसिद्धान्त अनुसार सभी पदार्थ परिणामी हैं । सम्पूर्ण पदार्थोको या सबमें एक भी वस्तुको यदि अपरिणामीपना माना जायगा, तो उसकी जगत्में सत्ता रहनेका हो विरोध हो जायगा । क्योंकि परिणामीपनसे सत्व व्याप्त हो रहा है । ब्यापक परिणामीपनके रहने