Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
मन:पर्ययज्ञानका विषय कौनसे
अर्थ में नियमित हो रहा है, इस बातको दिखलाते हुये श्री उमास्वामी महाराज अभीष्ट अर्थके संग्रहकी सिद्धिके लिये " तदनन्तभागे ” इत्यादिक श्रेष्ठ सूत्रको स्पष्ट कह रहे हैं ।
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कस्य पुनस्तच्छद्वेन परामर्शो यदनन्तभागेऽसर्व पर्यायेषु निबन्धो मन:पर्ययस्येत्याह । फिर आप यह बताओ ? कि इस सूत्र में दिये गये तत् शब्द करके किस पूर्व निर्दिष्टपदका परामर्श किया जायगा ? जिसके कि अनन्तमें भागमें और उसकी असर्व पर्यायों में मन:पर्यय ज्ञानका विषय नियत हो रहा है, इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य समाधान कहते हैं । परमावधिनिर्णीते विषयेऽनन्तभागताम् ।
नीते सर्वावज्ञेयो भागः सूक्ष्मोऽपि सर्वतः ॥ २ ॥ एतस्यानन्तभागे स्याद्विषयेऽसर्वपर्यये । व्यवस्थर्जुमतेरन्यमनःस्थे प्रगुणे ध्रुवम् ॥ ३ ॥ अमुष्यानन्तभागेषु परमं सौक्ष्म्यमागते ।
स्यान्मनः पर्ययस्यैवं निबन्धो विषयेखिले ॥ ४ ॥
परमावधि द्वारा निर्णीत किये गये विषय में जिनदृष्ट अनन्तका भाग देनेपर अनम्सर्वे भागपनेको प्राप्त हुये छोटे स्कन्धमें सर्वावधिका विषय समझना चाहिये, यद्यपि ये सबसे सूक्ष्म भाग है । फिर भी इस सूक्ष्म स्कन्धके अनन्तवें भागस्वरूप और कतिपय पर्यायवाले विषय में ऋजुमतिज्ञानकी द्रव्य अपेक्षा विषय व्यवस्था नियत है । आवश्यकता इस बातकी है कि वह छोटा स्कन्ध सरलरूप से अथवा त्रियोग द्वारा किया गया होकर दूसरेके मनमें स्थित हो रहा होना चाहिये । उस अनन्त भाग छोटे रुकन्चको निश्चितरूपसे ऋजुमति मन:पर्यय जान लेता है । पुनः ऋजुमतिके विषय हो रहे उस सूक्ष्म स्कन्धके अनन्त भागोंके करनेपर जो परमसूक्ष्मपनेको प्राप्त हो गया अत्यल्प छोटा स्कन्ध होगा उस अल्पीमान् स्कन्धको विपुलमति विषय कर लेता है । इस प्रकार पूर्वोक्त अनुसार सम्पूर्ण विषय में मन:पर्यय ज्ञानका नियम हो रहा है । अर्थात् - अपने या दूसरे के मनमें विचार लिये गये सभी रूपीद्रव्य और उनकी कतिपय पर्यायोंको मन:पर्ययज्ञान प्रत्यक्ष जान लेता है ।. ज्ञानके ज्ञेयको विषय कहते हैं । सप्तमी विभक्तिका अर्थ विषयत्व है ।
तच्छद्रोऽत्रावधिविषयं परामृशति न पुनरवधिं विषयप्रकरणात् । स च मुख्यस्य परामर्यते गौणस्य परामर्शे प्रयोजनाभावात् । मुख्यस्य परमावधिविषयस्य सर्वतो देशावधिविषयात्सूक्ष्मस्यानंतभागीकृतस्यानन्तो भागः सर्वावधिविषयस्तस्य सम्पूर्णेन