Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचोकवार्तिके
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विद्वानोंकी सम्प्रति हेय भास रहा है । तथा मोक्ष और संसार इन दोनोंके कारण भी प्रसिद्ध हो रहे वे संवर, निर्जरा, या मिथ्याज्ञान, कषाय, योग, स्त्री, पुत्र, धन, गृह, आदिक पदार्थ है, मोक्ष, संसार, और उनके कारण इन तीन जातिके पदार्थोसे भिन्न कोई भी पदार्थ वह विद्यमान नहीं है, जो कि उपेक्षा करने योग्य कहा जाय ! जगत् के सम्पूर्ण भी पदार्थ परम्पराकरके अथवा साक्षात् रूपसे हेय और उपादेय तत्वोंमें गर्भित हो जाते हैं । तिस कारणसे तुम मीमांसक बताओ कि भला कौन वस्तु उपेक्षणीय कही जाय ! संसारमें अनन्त विनययुक्त जीव हैं, जो कि आपकी परिभाषासे " विनेय " कहे जा सकते हैं । साक्षात् या परम्परासे सभी पदार्थ उनकी अपेक्षासे त्याग्य या उपादेय हो रहे हैं । अतः कीडा, कूडा, आदि पदार्थ भी डाक्टरों या किसानों और सेठोंको ग्राह्य या त्याज्य पदार्थ बन रहे हैं। अतः मीमांसकके सर्वज्ञको भी उक्त पदार्थोका ज्ञान करना बावश्यक पड गया। जगतके सम्पूर्ण पदार्थोंको जान चुकनेपर ही सर्वज्ञपना निरवध ठहर सकता है। अन्यथा नहीं।
द्वेषो हानमुपादानं रागस्तद्वयवर्जनं । ख्यातोपेक्षेति हेयाद्या भावास्तद्विषयादिमे ॥ १४ ॥ इति मोहाभिभूतानां व्यवस्था परिकल्प्यते ।
हेयत्वादिव्यवस्थानासम्भवात्कुत्रचित्तव ॥ १५॥
पदार्थोंमें द्वेष करना ही उनका हानि ( त्याग ) करना है और पदार्थोंमें राग करना ही उनका उपादान है । तथा उन राग, द्वेष दोनोंको वर्जना उपेक्षा कही जाती है । इस प्रकार हेय, उपादेय, उपेक्षणीय, प्रकारके भाव जगत्में प्रसिद्ध हैं। उन आत्मीय परिणाम हो रहे राग, द्वेष, उपेक्षाओं के विषय पड जानेसे ये पदार्थ भी हेय आदिक वखाने जाते हैं। इस प्रकार मोहप्रस्त जीवोंकी व्यवस्था चारों ओरसे कल्पित कर ली गयी है । तदनुसार तुम मीमांसकोंके यहां किसी भी एक विवक्षित पदार्थमें हेयपन आदिकी व्यवस्था करना असम्भव है।
हातुं योग्यं मुमुक्षूणां हेयतत्वं व्यवस्थितं । उपादातुं पुनर्योग्यमुपादेयमितीयते ॥ १६ ॥ उपेक्ष्यन्तु पुनः सर्वमुपादेयस्य कारणम् ।
संवोपेक्षास्वभावत्वाचारित्रस्य महात्मनः ॥ १७ ॥
वस्तुत: सिद्धान्त इस प्रकार है कि मोक्षको चाहनेवाले भव्य जीवोंके त्याग करने योग्य पदार्थ तो हेयतत्त्र है और मुमुक्षुओं के ग्रहण करने योग्य पदार्थ फिर उपादेयपनकरके व्यवस्थित हो रहे हैं । इस प्रकार प्रतीति की जा रही है। किन्तु फिर जीवन्मुक्त हो जानेपर सम्पूर्ण मी पदार्थ