Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे सन् गुरु मेव प्रतिनोदयति-प्रेरयति-यथाकुशलो भवानुपदेशदाने न तु क्रियायाम् । भवतैव कथं न क्रियते इत्यादि । एवं विधः पापश्रमण इत्युच्यते ॥१६॥
किंचमूलम्-आयरिय परिच्चाइ, परपासंडेसेवए।
गाणंगणिए दुब्भूएं, पावसमणेति वुच्चइ ॥१७॥ छाया-आचार्यपरित्यागो, परपापण्डसेवकः ।
गाणङ्गणिको दुर्भूतः, पापश्रमण इत्युच्यते ॥१७॥ टीका--'आयरिय' इत्यादि।
यः आचार्यपरित्यागी आचार्य परित्यजतीति आचार्यपरित्यागी भवति । समर्थैरपि द्धादिभिः कार्य न कारयति, मामेव कार्य कर्तुं प्रेरयति । तथाआसेवन शिक्षामें गुर्वादिकोंके द्वारा प्रेरित होने पर (पडिचोइएप्रतिनोदयति) जो स्वयं गुरुओंके साथ बादविवाद करने लग जाता हैजैसे-आप उपदेश देनेमें जितने बडे दक्ष हैं उतने क्रियामें दक्ष नहीं हैं यदि ऐसी ही बात है तो आप ही क्यों नहीं कर लेते इत्यादि। इस प्रकारका साधु (पावसमगेत्ति बुच्चइ-पापश्रमण इत्युच्यते ) पापश्रमण कहा गया है ॥१६॥
तथा-'आयरिय परिच्चाई' इत्यादि
अन्वयार्थ-जो साधु (आयरिय परिच्चाइ-आचार्य परित्यागी) आचार्यका परित्याग कर देता है अर्थात् जब वे कुछ कार्य करनेके लिये कहते हैं तब उनसे ऐसा कहता है कि आप इन समर्थ वृद्धादिक साधुओं द्वारा तो काम कराते नहीं हैं, केवल मुझे ही कार्य करनेके लिये प्रेरित ४२ माहि३५ मासेवन शिक्षामा गुरु साहि ॥ २॥ यता पडिचोइओ-प्रति नोदयति ले शुरुमानी साथे पाहविवाह ४२१॥ all 14-मई २५ 8५દેશ આપવામાં જેટલા ચતુર છો તેટલા ક્રિયામાં નથી. જે એમજ છે તો આપજ
भ नयी ४ी बेता! त्याहि. २0 ४२साधु पावसमणेत्ति बुच्चइ-पापश्रमण इत्युच्यते पाश्रम उपाय छ. ॥१६॥
तथा-"आयरिय परिचाई" त्याह! ___-क्या-२ साधु आयरिय परिचाइ-आचार्य परित्यागी मायाय ने। પરિત્યાગ કરી દે છે, અર્થા-જ્યારે તે કાંઈ કામ કરવાને માટે કહે છે ત્યારે એમને એવું કહે છે કે, આપ આ સમર્થ વૃદ્ધાદિક સાધુઓ પાસે તે કામ કરાવતા નથી
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3