Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 980
________________ ९६८ उत्तरध्यायनपत्रे सम्प्रति अध्ययनार्थमुपसंहरन महापुरुषसंगमफलमा-- मूलम्- केसी गोयमओ णिचं, तम्मि आसि समा मे। सुयसील समुकरिसो, महत्थ स्थविणिच्छओ ॥८॥ छाया--केशि गौतमतो नित्यं, तस्मिन्नासीत् समागमे । श्रुतशीलसमुत्कर्षों, महार्थाथ विनिश्चयः ।।८८|| टीका--'केसि गोयमओ' इत्यादि । तस्मिन् पुरे केशिगौतमयोः समागमे संमेलने केशि गौतमतः केशि गौतमाभ्यां तयो र वस्थावधि नित्यं श्रुतशील समुत्कर्षः-श्रुतं-ज्ञानं, शीलम्= आचारः तयोः समुत्कर्षः-समुन्नतिः-ज्ञानाचरणमकर्पः, महार्थाथेविनिश्चयःमहार्थाः-मुक्ति साधकत्वेन महाप्रयोजना ये अर्थाः शिक्षात्रतादयस्तेषां विनिश्चयो निर्णयश्च आसीत् अभूत्, तयोः शिष्यापेक्षयेदं बोध्यम् ॥८८।। तथा-- मूलम्-तोसिया परिसा सव्वा, सम्मग्गं समुवटिया । संथुया ते पसीयं तु,भयंवं केसी गोयमे-त्ति बेमि ॥८९॥ ॥इइ केसिगोयमिजं अज्झयणं समत्तं ॥२३॥ पहेले पार्श्वनाथ के समय में चातुर्यामरूप धर्म था और अब अंतिम तीर्थकर के इस शासन काल में पंचयाम रूप धर्म है। अतः उन्हों ने भी इस पंचयामरूप धर्म को अंगीकार कर लिया ॥८६९८७।। अब अध्ययन का उपसंहार करते हुए केशीश्रमण और गौतम जैसे महापुरुषों के समागम का फल कहते हैं--'केसिगोयमओ इत्यादि। उस नगर में केशिगौतम के इस समागम में उन दोनों से श्रुतज्ञान की एवं शीलरूप आचार धर्म की खूब उन्नति हुई तथा मोक्ष का साधनभूत शिक्षावत आदिरूप अर्थ का अच्छी तरह निर्णय हुआ ॥८८॥ કે પહેલાં જે પાર્શ્વનાથના સમયમાં ચાતુર્યામ રૂપ ધર્મહતું અને હવે અંતિમ તીર્થકરના આ શાસનકાળમાં પાંચયામ રૂપ ધર્મ છે આથી એમણે પણ પાંચયામ રૂપ ધર્મ અંગીકાર કરી લીધ, ૮૬૮૭ - હવે અધ્યયનને ઉપસંહાર કરીને કેશીશ્રમણ અને ગૌતમ જેવા મહાપુરુષના सभासमना जने ४ छ-"केसिगोयमओ" त्यादि। આ નગરમાં કેશી ગૌતમના આ સમાગમમાં એ બન્નેથી લતાજ્ઞાનની તથા શિલરૂપ આચાર ધર્મની ખૂબ ઉન્નતિ થઈ તથા મોક્ષના સાધન ભૂત શિક્ષાવ્રત આદિરૂપ અને સારી રીતે નિર્ણય થયો. ૧૮૮ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩

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