Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 997
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २४ अष्टप्रवचनमातृवर्णनम् देविलोकनं यत्र तदसंलोकम्-स्थण्डिलम: अनापातमसंलोकमिति प्रथमो भङ्गः। चैव-च-पुनः, 'एव'कारःपूरणार्थः, अनापातं संलोक-संलोकोऽस्त्यस्मिन्निति संलोकं-स्थण्डिलं भर्वात । अयं भाव:-यत्र स्थण्डिले स्वपक्षपरपक्षादेरागमनं न भवति. परन्तु संलोकश्च भवति, इति अनापातं संलोकमिति द्वितीयो भङ्गः। आपातम्आपात: स्वपरपक्षयोरागमनं यत्र तदापातम, असंलोकम-स्वपक्षपरपक्षयोरालोकवर्जितं स्थण्डिलमिति तृतीयो भङ्गः । आपातंचैव संलोकं स्थाण्डिलम-यत्र स्थण्डिले स्वपक्षपरपक्षयोरागमनम् आलोकश्च भवति तादृशं स्थाण्डिलं च भवतीति चतुर्थों भङ्गः। एवमन्य परास्योवघातिकादि विशेषणेष्वपि चत्वारो भङ्गा बोध्याः ।।१६। दश विशेषणपदज्ञापनार्थमुच्चारादि यादृशे स्थण्डिले व्युत्सृजेत्तदाह । मूलम्-अणावायंमसंलोए, परस्सऽमुवघाइए। संमे अज्झुसिरे वावि, अचिरकालंकयम्मि य ॥१७॥ वित्थिन्ने दूरमोगाढे, णासन्ने बिलंवजिए। तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥१८॥ होने पर भी स्वपर उभय पक्ष के व्यक्तियों का अवलोकन (देखना) जहां पर न हो ऐसी भूमि का नाम अनापात एवं असंलोक है। यह पहिला भंग है ।। जो भूमि (अगावाए चेय होइ संगेर-अनागतं चैव भरति संलोकम्) अनापात तो हो परन्तु असंलोक न हो अर्थात् संलोक हो यह द्वितीय भंग है ।२। जो भूमि (अवायमसंलोए-आपातमसंलोकम् ) आपात हो परन्तु संलोक नहीं हो यह तीसराभंग है ।३। तथा जो भूमि (आवायं चैव संलोए-आपातं चैव संलोकम्) आपात भी हो तथा संलोक भी हो ऐसी वह भूमि चतुर्थभंगवाली जाननी चाहिये ।४। इसी तरह के चारभंग भूमि के अन्य विशेषणों में भी लगा लेना चाहिये ॥१६॥ પણ સ્વ પર ઉભય પક્ષની વ્યકિતઓનું અવલોકન જયાં ન હોય એવી ભૂમિનું નામ मनापात भने मसा: छ. मछ. (१) २ भूमि अणावाए चेत्र होइ सलोए-अनापातं चैव भवति संलोकम् मनापात डा५ ५२ असो नाय मथात् स हाय मे भी छे. (२) २ भूमि अवायमसंलोए-आपातमसंलोकम आपात सय ५५ स न तेत्रीने छे. [3] तथा २ भूभी अवायं चेव संलोए-आपातं चैव संलोकम् मापात पर जोय तथा संसा पहीय એવી તે ભૂમિ ચેથા અંગવાળી જાણવી જોઈએ (૪) આ પ્રકારના ચાર ભૂમિના અન્ય વિશેષણ પણ લગાડી લેવા જોઈએ. ૧૬ ૧૨૪ उत्तराध्ययन सूत्र : 3

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