Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1000
________________ ९८४ उत्तराध्ययनसचे तत्राधां मनोगुप्तिमाह ।। मूलम्स च्चा तहेव मोसा ये, सच्चामोसा तहेवे य । चउत्थी असच्चमोसा थे, मणगुत्ती चउव्विहीं ॥२०॥ छाया--सत्या तथैव मृषा च, सत्यामृषा तथैव च । चतुर्थी असत्यामृषा च, मनोगुप्तिश्चतुर्विधा ॥२०॥ टीका-'सच्चा' इत्यादि। ___सत्या-मद्भ्यः पदार्थेभ्यो हितः सत्यः-सत्पदार्थचिन्तनरूपो मनोयोगस्तद्विषया मनोगुप्तिरप्युपचारात्सत्या, च-पुन: तथैव मृषा-असत्या--पूर्वोक्त मनोयोगविपरीतमनोयोगविषया मनोगुप्तिरुपचारान्मृषा, तथैव च सत्यामृषा उभयात्मकमनोयोगविषया मनोगुप्तिः, १-पुनः चतुर्थी असत्यामृषा-उभयस्वभावरहितमनोदलिकव्यापाररूपमनोयोगविषया मनोगुप्तिः । इत्थं मनोगुप्तिश्चतुविधा कथिता ॥२०॥ तीन गुप्तियों में से प्रथम मनोगुप्ति को कहते हैं-'सचा' इत्यादि। अन्वयार्थ-(सचा-सत्या) सत्य१, (मोसा-मृषा) असत्य २, (सच्चा मोसा-सत्यमृषा) सत्यासत्य ३, ऐवं चौथी (असच्चमोसा-असत्यमृषा) अनु. भय ४, इसरूप से मनोगुप्ति चार पकारकी है। सत्पदार्थ के चिन्तवन रूप मनोयोग को विषय करने वाली मनोगुप्ति सत्यमनो गुप्ति है । असत्पदार्थ के चिन्तवनरूप मनोयोग को विषय करने वाली मनोगुप्ति है। उभयरूप पदार्थ के चिन्तवनरूप मनोयोग को विषय करने वाली मनोगुप्ति सत्यासत्यमनोगुप्ति है। उभय स्वभाव रहित मनोदलिक व्यापाररूप मनोयोगविषयक मनोगुप्ति का नाम अनुभय मनोगुप्ति है ॥२०॥ ये ५ अभियामा प्रथम भन गुप्तिन.30-"सा" त्या ! मयार्थ- सच्चा-सत्या सत्य (१) मोसा-मृषा असत्य (२] सञ्चामोसासत्यमृषा सत्या सत्य (3) भने यात्री असच्चमोसा-असत्यमृषा भतुमय (४) २ રૂપથી મને ગુપ્તિ ચાર પ્રકારની છે. સત્પદાર્થના ચિંતવન રૂપ મનના યોગને વિષય કરવાવાળી મને ગુપ્તિ સત્ય અને ગુપ્તિ છે. અસત્ પદાર્થને ચિંતન રૂપ મનો ગને વિષય કરવાવાળ મને ગુપ્તિ અસત્ય અને ગુપ્તિ છે. ઉભયરૂપ પદાર્થના ચિંતનરૂપ મ ગને વિષય કરવાવાળી મને પ્તિ સત્યાસત્ય અને ગુપ્ત છે. ઉભય સ્વભાવ વગરની અનેકલિક વ્યાપાર રૂપ મ ગ વિષયક મને ગુપ્તિનું નામ અનુભય માને ગુપ્તિ છે. ૨ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩

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