Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 999
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २४ अष्टप्रवचनमातृवर्णनम् ९८७ द्यानादेदरस्थिते ८, बिलवर्जिते-मूषकादिबिलरहिते ९, तथा-सपाणबीजरहिते -सप्राणाः द्वीन्द्रियादयः, बीजानि-शाल्यादीनि, इदं समस्तैकेन्द्रिय-जीवानामुपलक्षणम्, एतै रहितेवर्जिते च स्थण्डिले उच्चारादीनि व्युत्सृजेत्= परिष्ठापयेत् ॥ १७ ॥ १८ ॥ सम्पत्युक्तार्थमुपसंहरन् वक्ष्यमाणार्थसम्बन्धाभिधानायाह । मूलम्-एयाओ पंच समिईओं, समासेण वियोहिया। इत्तो यं तंओ गुत्ती, वोच्छामि अणुपुव्वसो ॥१९॥ छाया--एताः पञ्चसमितयः, समासेन व्याख्याताः। इतश्च तिस्रो गुप्तीः, वक्ष्यामि अनुपूर्वशः ॥ १९ ।। टीका--'एयाओ' इत्यादि । पता: पूर्वोक्ताः पञ्चसमितयः समासेन-संक्षेपेण व्याख्याताः उत्ताः। च-पुनः इतोऽनन्तरं तिस्रो गुप्तीरनुपूर्वशः क्रमेण वक्ष्यामि-कथयिष्ये ॥१९॥ नीचे चार अंगुल अचित्त हो ७, (णासन्ने-नासन्ने) आसन्न नहीं हो ग्राम उद्यान आदि से दूर हो ८, (बिलवजिए-बिलवर्जिते) बिलवर्जित हो चूहा आदिकों के बिल जिसमें न हों ९ एवं (तसपाण वीयरहीए-त्रस प्राणवीज रहिते) जिस जमीन में द्वीन्द्रियादिक जीव न हो शाल्यादिक बीज न हो १० एसी भूमि में साधु उच्चार आदि का परिष्ठापन न करे ॥१७॥१८॥ ___ अब उपसंहार करते हुए श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं- 'एयाओ' इत्यादि। इस प्रकार ये पांच समितियां संक्षेप से मैंने कही हैं । अब इनके बाद क्रमशः तीनगुप्तियों को कहता हूं ॥१९॥ माछामा माछु नये या२ i11 मयित्त डो4 (७) णासन्ने-नासन्ने मासन्न नीय ग्राम उधान माथी ६२ डोय (८) बिलजिए-बिलवर्जिते ना ४२ ज्यां न 4 () तसपाणवीयरहीए-त्रसपाणबीजरहिते सने से भीनमा દ્વિ ઇન્દ્રિયાદિક જીવ ન હોય અને શાલ્યાદિક બીજ પણ ન હોય (૧૦) આવી ભૂમિમાં સાધુએ ઉચ્ચાર આદિનું પરિણાન કરે. ૧૭૧૮ ३३ पडा२ ४२तां श्री सुधा स्वामी ४.-"एयाओ" त्या ! આ પ્રકારે એ પાંચ સમિતિઓ સંક્ષેપથી મેં કહેલ છે. હવે આના પછી કમશઃ ત્રણ ગુપ્તિને કહું છું. ૧લા उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3

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