Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 994
________________ ९८२ उत्तराध्ययनसूत्रे उक्ता एषणासमितिः, इदानीमादाननिक्षेपणासामतिमाह-- मूलम्-ओहोवहाँवग्गहियं, भंडंगं दुविहें मुणी। गिण्हंतो निक्खिवंतो य, पउंजिज्ज इमं विहि ॥१३॥ छाया--ओघोपध्यौपग्रहिकं, भाण्डकं द्विविधं मुनिः । गृह्णन् निक्षिपंश्च, प्रयुञ्जीत इमं विधिम् ॥१३॥ टीया--'ओहोवहोवग्गहियं' इत्यादि। . मुनिः ओघोपध्यौपग्रहिकम् अधोपधिम् औपग्रहिकोपधि,तत्र-श्रोघोपधि= नित्यग्राह्यलक्षणं सदोरकमुखवस्त्रिकारजोहरणादिकम् , औपग्रहिकम् कारणग्राह्य लक्षणं भाण्डकम् उपकरणम् एतद् द्विविध-द्विप्रकारकमुपधिं गृह्णन्-आददानः, निक्षिपन्-स्थापयंश्च इमं वक्ष्यमाण विधि प्रयुञ्जीत-कुर्यात् । 'ओहोवहोवग्गहियं' इत्यत्र 'उबहि' शब्दो मध्यनिर्दिष्टो 'देहलीदीप न्यायेन' उभयत्रापि संबध्यते ।।१३।। विधिमेवाह-- मूलम्-चक्खुसा पडिलेहिता, पमजिज जयं जई। आइए निक्खिवेज वी, दुहओ वि समिए संया॥१४॥ चउत्थं पायमेव य” चतुष्क पद से पिण्ड, शय्या, वस्त्र एवं पात्र इन चारों का यहाँ ग्रहण इस कथन के अनुसार किया गया है ॥१२॥ ___आदाननिक्षेपण समिति का स्वरूप इस प्रकार है 'ओहोयहोवग्गहियं' इत्यादि। अन्वयार्थ-(मुणी-मुनिः) मुनि (ोहोवहोवग्गहीयं-ओघोपध्यौपग्रहिक) ओघोपधि-नित्यग्राह्यरूप सदोरकमुखवस्त्रिका रजोहरण आदि-को तथा "औपग्रहिकं कारण ग्राह्यलक्षण (भँडग-भाण्डकम् ) उपकरण को (दुविहंदुविहम् ) इन दोनों प्रकार की उपधि को (गिण्हतो-गृह्णन् ) उठाता हुआ तथा (निक्खिवंतो-निक्षिपन्) धरता हुआ (इमं विहिं पउंजिज-इमं पिधिम् प्रयुञ्जीत) इस नीचे कही जाने वाली विधि को काम में लेवे ॥१३॥ ४३. "पिंडं, सेज च वत्थं च चउत्थं पायमेवय" यतु ४ ५४थी (4, शय्या, वस्त्र અને પાત્ર આ ચારેનું ગ્રહણ અહીં આ કથનના અનુસાર કરવામાં આવેલ છે ૧રા साहन निक्षेप समिति २१३५ २प्रा२नु छ--"अोहो वहो वग्गहियं" त्या ! अन्वयार्थ:--मुणी-मुनिः भुनि ओहो वहोवग्गहियं-ओघोपध्यौपग्रहिकं माधोपधि नित्य ગ્રાહયરૂપ સદે રકમુખવસ્ત્રિકા રજોહરણ આદિને તથા ચૌgશાદિ કારણ ગ્રાહ્ય લક્ષણ भंडगं-भाण्डकम् १५४२४ने दुविहं-दुविहम् । भन्ने प्रश्नी उपधिने गिणतो. गृह्णन् 6sता भने निक्खिवंतो-निक्षिपन् था२७५ ४२ता इमं विहिं पउंजिज्ज-इमं विधिम प्रयुञ्जीत मानीय ४ामा मावस विधिन अभमा क्ष्ये ॥१३॥ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩

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