Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 955
________________ __ १४३ प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम् गौतमः पाह-- मूलम्-पहावंतं निगिलामि, सुयरैस्सीसमाहियं । नं मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवैजइ ॥५६॥ छाया--प्रधावन्तं निगृह्णामि, श्रुतरश्मिसमाहितम् । न मे गच्छति उन्मार्ग, मार्ग च प्रतिपद्यते ॥५६॥ टीका--"पहावंत' इत्यादि ।। हे भदन्त ! श्रुतरश्मिसमाहितं श्रुतम्-अागमस्तद् रश्मिरिवग्रह (लगाम इति भाषा प्रसिद्ध इव-श्रुतरश्मिस्तेन समाहितः नियन्त्रितस्तं तथाभूतं प्रधावन्तं दुष्टाश्वं निगृह्णामि स्वाधीनं करोमि । अतो मे ममासौ दुष्टाव उन्मार्ग-विपरीतमार्ग न गच्छति-न नयतीत्यर्थः। किं तु मार्ग-सत्पथं प्रतिपद्यते मार्ग मारुह्य गच्छतीत्यर्थः ॥५६।। केशि पृच्छतिमूलम्--आंसे ये इई के वुत्ते?, केसी गोयममबंधी। तओं के सिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥५७॥ इसके उत्तर रूप में गौतमस्वामी ने कहा--'पहावंत' इत्यादि। अन्वयार्थ-हे भदन्त ! जिस घोडे पर मै सबार हुवा हूं वह घोडा (मुयरस्सी समाहियं पहावंते निगिण्हामि--श्रुतरश्मि समाहितम् प्रधावन्तं निगृह्णामि) श्रुतरूप लगाम से नियंत्रित है, अतः जब यह दौडने लगता है तर में इसको उस लगाम के द्वारा रोक लेता हूं। इसलिये (मे उम्मग्गं न गच्छइ-मे उन्मार्ग न गच्छति) यह उन्मार्ग पर मुझे नहीं ले जाता है। किन्तु सीधे ही मार्ग पर चलता रहता है।--गौतम के इस कथन को सुनकर पुनः केशी ने उनसे पूछा--॥५६॥ माना उत्त२ २१३५मा गीतमस्वामी-मे घु-पहावंत" छत्या ! हे महन्त ! रे ! ५२ स्वा२ थये। छुये थे। सुयरस्सीसमाहियं पहावंतं निगिह्नामि-श्रुतरश्मि समाहितम् प्रधावंतं निगृह्णामि श्रुत३५ ८मयी नियति छ साथी मे उम्मगं न गच्छइ-ये उन्मार्ग न गच्छति गया३ ते हो। માંડે છે ત્યારે હું એને એ લગામ દ્વારા રોકી લઉં છું. આ કારણે એ મને ઉમા ઉપર લઈ જઈ શકતો નથી. પરંતુ સીધા માર્ગ ઉપર જ ચાલે છે. ગૌતમના આ કથનને સાંભળીને ફરીથી કેશીએ એમને પૂછયું. ' પદા उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3

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