Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे चनानि कुपथा इत्युक्तम् । हि-यतः एष जिनोक्तो मागः उत्तमः-उत्कृष्टतमः= विनयमूलत्वादयं जिनोक्तो मार्गः सर्वमार्गापेक्षया श्रेष्ठ इति यावत् ॥६३॥
पुनः केशी मुनिः प्राहमूलम्-साह गोयंम ! पण्णा ते, छिन्नो में संसओ इमों ।
अन्नो वि संसओ मज्झं,तं" मे" कहसु गोयमा !॥६४॥ छाया--साधु गौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे संशयोऽयम् ।
अन्योऽपि संशयो मम, तं मे कथय गौतम ! ॥६४॥ टीका--'साहु' इत्यादि । व्याख्या पूर्ववत् ॥६४॥ मूलम्-महाउदगंवेगेणं, वुज्झमाणाण पाणिणं ।
सरणं गई पइट य, दीव के मन्नंसी मुंणी !॥६५॥ आदि दर्शनों के अनुयायी जितने भी हैं वे सब (उम्मग्गपटिया-उन्मार्ग प्रस्थिताः) उन्मार्गगामी हैं। क्यो कि ये कपिल आदि दर्शन सब कुमार्ग हैं । तथा (तु जिणमक्खायं सम्मगं-तु जिनाख्यातः सन्मार्गः) जिनेन्द्रद्वारा प्रतिपादित मार्ग ही एक सन्मार्ग है, क्यों कि विनय नूल होने से (एसमग्गे उत्तमे-एष मार्गो हि उत्तमः) यही सब मार्गों की अपेक्षा श्रेष्ठ मार्ग है ॥६॥
गौतम प्रभु की इस बात को सुनकर केशी मुनि ने कहा-- 'साहु' इत्यादि।
हे गौतम मेरे प्रश्न का उत्तर देने के कारण आपकी प्रज्ञा बहुत ही अच्छी है। मुझे और भी संशय है अतः उसकी भी निवृत्ति आप करें ॥६४॥ अनुयायी मा से सपा उम्मग्गपट्टिया-उन्मार्गपस्थिता: Gभाभी छ. मई से पिe मा न मधुसुमाग . तथा तु जिणमक्खायं सम्मग्गंतु जिनाख्यातः सन्मार्गः नेन्द्र द्वारा प्रतिपाहित भाग से सन्मा. म है, विनयभूण पाथी एस मग्गे उत्तमे-एष मार्गों हि उत्तमः मा४ सपा મોંની અપેક્ષા શ્રેષ્ઠ માર્ગ છે. ૬૩
देशी श्रम पूछे --" महाउदगवेगेणं" त्या !
હે ગૌતમ મારા પ્રશ્નનો ઉત્તર સારી રીતે આપવાથી આપની પ્રજ્ઞા ઘણી જ ઉત્તમ છે. મને બીજે પણ સંશય છે જેથી આપ તેને પણ દૂર કરો. ૬૪
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3