Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 892
________________ ८०० उत्तराध्ययनम तेन यदुक्तं तदुच्यते-- मूलम्-रहनेनी अहं भद ! सुरूवे ! चारु भासिणि । ममं भयाहि सुतणू !, न ते पीला भविस्सइ ॥३७॥ छाया-रथनेमिरहं भद्रे ! मुरूपे चारुभाषिणि । मां भजस्व सुतनु !, न ते पीडा भविष्यति ।।३७।। टीका--'रहनेमि' इत्यादि। हे भद्रे ! अहं रथनेमिः=रथनेमिनामाऽस्मि । हे मुरूपे-मुन्दरि, हे चारुभापिणि-मधुर वचने ! मां भजस्व-भर्तृत्वेनाङ्गीकुरु येन हे सुतनु-शोभनाङ्गि ! ते-तब पीडा-जीवननिर्वाश्कष्टं न भविष्यति ॥३७॥ मूलम्-एहि तो भुजिमो भोएं, माणुस्सं खं सुदुल्लहं । भुत्तभोगी तओ पच्छा, जिणमैग्गं चरिस्सैमो ॥३८॥ छाया-एहि तावद्. भुञ्जीवहि भोगान् , मानुष्यं खलु सुदुर्लभम् । भुक्तभोगिनौ ततः पश्चा,-जिनमार्ग चरिष्यावः । ३८॥ टीका-.'एहि ता' इत्यादि। हे मुन्दरि ! एहि आगच्छ मम समोपे । आवां तावत्-प्रथमं भोगान्= शब्दादि कामभोगान् भुञ्जीवहि अनुभवेव । खलु यतो मानुष्यं मनुष्यजन्म 'रहनेमि' इत्यादि। अन्वयार्थ--(भद्दे-भद्रे) हे भद्रे ! (अहं रहनेमो-मैं रथनेमि हैं। (सुरूवे चारुभासिणि-सुरूपे चारुभाषिणि) हे सुन्दर रूपवाली एवं मधुर बोलनेवाली (ममं भयस्व-मां भजस्व) मुझे अब तुम अपना पतिस्वरूप समझकर अंगीकार करो। जिससे (सुतणू-सुतनु !) हे शोभनाङ्गी ! (ते-ते) तुझे (पीला-पीडा) जीवन निर्वाह सम्बन्धी किसी प्रकार का कष्ट (न भविस्सइ-न भविष्यति) नहीं होगा ॥३७॥ रहने मित्यादि। मन्वयार्थ --भद्दे-भद्रे उ भने ! अहं रहनेमी-अहं रथनेमी थने भी छु सुरूवे चारुभासिणि-मुरूपे चारूभाषिणि हे सु२ ३५वाजी भने मधु२ मालवा पाणी ममं भयस्व-मां भजस्व भने हवेतमे पति २१३५ समलने 24111२ ४२१. २था सुतणू-सुतन् शासनांगी ते-ते तभने पीला-पीडा न निls Aधी | Rनु ४०८ न भविस्सइ-न भविष्यति ये नही. ॥३७ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩

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