Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे भयङ्कराः अनर्थहेतुतया त्रासोत्पादकाः स्नेहपाशाः-पुत्रामित्रादि सम्बन्धिस्नेहरूपाः पाशाः सन्ति । तान् रागद्वेषादीन् , स्नेहपाशांश्च, यथान्यायं सर्वज्ञकथितमर्यादामनुश्रित्य, छित्त्वा यथाक्रमम्-तीर्थकरपरम्परानुसारेण विहरामि-ग्रामनगरादिषु अप्रतिबद्धविहारितया विचरामि । स्नेहस्य रागान्तर्गतत्वेऽपि अतिगाढ. स्वात् स भिन्नतया निर्दिष्टः ॥४३॥
पुनः केशी गौतमं प्रशंसन् पृच्छति-- मूलम्-साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो में संसओ इंमो !
अन्नों वि संसओ मैज्झं, तं मे" कहसु गोयमा!॥४४॥ छाया--साधुौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे संशयोऽयम् ।
अन्योऽपि संशयो मम, तं मे कथय गौतम ! । ४४॥ आदि तथा (तिव्वा-तोत्राः) अतिगाढ एवं (भयंकरा-भयंङ्कराः) त्रासोत्पादक पुत्रादिक संबंधी (नेह-स्नेहः) स्नेह ये सब (पासा-पाशाः) पाश हैं। (ते-तान्) इनको (जहानायं-यथान्यायं) सर्वज्ञकथित मर्यादा के सहारे से (छिंदितु-छित्वा) नष्ट कर (जहक्कम-यथाक्रमम् ) तीर्थकरों की परम्परा के अनुसार मैं अप्रतिबद्ध बनकर ग्राम नगरादिकों में (विहरामि-विहरामि) विहार करता हूं। इस गाथा में यद्यपि स्नेह राग के अन्तर्गत होने से अलग नहीं कहना चाहिये था फिर भी स्वतंत्ररूप से जो उसका उल्लेख किया गया है वह उसमें अत्यंत गाढता बतलाने के लिये ही किया गया है ॥४३॥
'साहु' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(गोयम-गौतम) है गौतम (ते-ते) तुम्हारी (पन्नातिव्या-तीव्राः अति साढ भयंकरा-भयंङ्कराः मने वासना उत्पन्न ४२नार पुत्र सधी नेह-स्नेहः स्नेह मा सघना पासा-पाशाः धन छ मेमने जहानायंयथान्यायं सर्वज्ञ द्वा२। वामां आवेदी भर्याहाना सारथी छिदित्तु-छित्वा नष्ट ४ जहक्कम-यथाक्रमम् ती रेनी ५२५२राना अनुसार ई. मप्रतिपाद्ध मनाने श्राम नगर माहिमा विहरामि-विहरामि विहा२ ४३ छु मा यामा , નેહરાગનું અંતર્ગત હોવાથી અલગ રીતે કહેવાની જરૂરત ન હતી. છતાં પણ સ્વતંત્રરૂપથી જે તેને ઉલેખ કરવામાં આવેલ છે તે તેમાં અત્યંત ગાઢતા બતાવવા માટે જ કહેલ છે. ૪૩
"साह" इत्यादि। मन्वया-गोयमा-गौतम गौतम ते-ते तभा पन्ना-प्रज्ञा मुद्धि
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3