Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 669
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २१ एकान्तचर्यायां समुद्रपालदृष्टान्तः पूर्व-पश्चाद् भेदेन द्विविधः। तत्र पूर्वसंस्तवो मातापित्रादीनाम्, पश्चात्-संस्तवः श्वशुरादीनाम् । पुनःविरता-पापक्रियाभ्यो निवृत्तः, आत्महितः आत्मनां जीवानां हिता हिताभिलाषुकः, प्रधानवान्-प्रधान-संयमो मुक्तिहेतुत्वात् तद् यस्यास्ति स तथा, संयमगनिन्यर्थः, तथा-छिन्नशोकः-शोकरहितः, छिन्नस्रोताः' इतिच्छाया पक्षे-छिन्नानि स्रोतांसि-मिथ्यादर्शनादीनि येन स तथा, अत एव-अममःममत्वरहितः, तत एव अकिञ्चनः द्रव्यादिपरिग्रहरहितः स समुद्रपालमुनिः परमार्थपदेषु-परमार्थों मोक्षः पद्यते-प्राप्यते यैस्तानि परमार्थपदानि=सम्यग्दशनादीनि तेषु तिष्ठति=स्थितोऽभवत् । 'परमपरहि' इत्यत्र सप्तम्यर्थे तृतीया ॥२१॥ मूलम्--विवित्तलयणाणि भईज ताई, निरोवलेवाई असंथडाइं। इसीहिं चिण्णाइं महार्यसेहि, कायेणं फासेज परीसंहाई ॥२२॥ किंच-- छाया--विविक्तलयनानि अभनत्त्रायी, निरुपलेपानि असंस्तृतानि । __ ऋचिभिश्चीर्णानि महायशोभिः, कायेनास्पृशत्परीषहान् ॥२२॥ इन मुनिराज ने इन दोनों प्रकार का संस्तव परित्यक्त कर दिया । (विरएविरतः) पापक्रियाओं से निवृत्त हो कर (आयहिए-आत्महितः) ये जीवों के अभिलाषी बने। इसीलिये ये (पहाणवं-प्रधान वत् ) मुक्ति के प्रधान हेतु होने से संयमधारी हुए (छिन्नसाए-छिन्नशोकः) शोक को इन्हों ने अपनी विचार धारा से बाहर कर दिया। अथवा ये छिन्नस्रोत-मिथ्यादर्शन आदि से रहित होकर (अममे-अममः) परपदार्थों में ममताभा से विहीन बने (अकिंचणे-अकिंचनः (द्रव्यादि परिग्रह से वर्जित होकर (परमपएहिं चिट्ठइ-परमार्थपदेषु तिष्ठति) वे परमार्थ के साधन भूत एक मात्र सम्यग्दर्शन आदि के परिपालन में ही सावधान हुए ॥२१॥ परित्याशी , विरए-विरतः पाठिया माथी निवृत्त मनी आयहिए-आत्महितः ते। याना हित साधवाना मानाषी मन्या माणे ते पहाणवंप्रधानवत भुखितना प्रधान तुडवाथी संयमधारी मन्या. छिन्नसोए-छिन्नशोकः શેકને તેઓએ પિતાની વિચારધારાથી બહાર કરી દીધું અથવા તેઓ છિન્નસ્રોત भिथ्याशन माहिथी हित मनी, अममे-अममः ५२५हाथ wi ममतामाथी विहीन मन्या. मने अकिंचणे-अकिञ्चनः द्रव्याहि पश्थिी पळत सनीन परमट्टपएहि चिट्ठइ-परमार्थपदेषु तिष्ठति ते ५२भा साधनभूत मे मात्र सन्यशन माहिनु પરિપાલન કરવામા જ સાવધાન બન્યા. ૨૧ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3

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