Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययन सूत्रे
किं च-मूलम् - तुहं पियाई मंसाई, खंडाई सोहंगाणि यँ । खाइओमि' समसाई, अग्गिर्वण्णाऽगंसो ॥६९॥ छाया -- तत्र प्रियाणि मांसानि खण्डानि शूलाकृतानि च । खादितोऽस्मि स्वमांसानि अग्निवर्णान्यनेकशः ॥६९॥ टीका -- 'तु' इत्यादि ।
हे मातापितरौ ! परमधार्मिकैः 'रे नारक ! तत्र प्राग्भवे खण्डानि = खण्डरूपाणि शूलाकृतानि = शूले समाविध्य पक्कानि च मांसाणि प्रियाणि आसन' इति स्मयित्वा मम शरीरान्मासान्युत्कृत्य खण्डरूपाणि शूलाकृतानि च तानि को (सुभेरवम- सुभैरवम् ) भयकर (आरसंतो- आरसन्) रुदन करनेवाले मुझे (पायिओ - पतिः) पिलाया है। नरको में नारकियों को पानी की जगह लौहा तथा रांगा एवं शीशा आदि पिघलाकर परमाधार्मिक देव पिलाते हैं । यही दशा मृगापुत्र कहता है कि मेरी भी बहां हुई है ॥ ६८ ॥
तथा - 'तुहं' इत्यादि ।
अन्वयार्थ - हे मात तात । उन परमाधार्मिक देवोंने ऐसा कह कर मुझे मांस खिलाया है कि हे नारक तुझे पहिले भव में (खंडाई - खण्डानि) खंडरूप तथा (सोल्लाणि य-शूलाकृतानि च) शूलपर पिरोकर पकाया गया ( मंसाइ - मासानि ) मांस ( पियाई - प्रियाणं ) बहुत प्रिय था सो अब यहां पर भी उसी तरहका मांस तूखा, इस तरह स्मरण करवा कर उन लोगो ने (समसाई - स्वमांसानि ) मेरे शरीर से मांस को काट कर और उसको टुकडे रूप में कर पश्चात् शूल पर पिरोकर ३४न उरनारा मेवा भने पाइओ - पायितः पीवराज्य है. नरम्भां नारडीओने પાણીની જગાએ ઉકળતુ લેતું, રાંગા, અને સીસું પીવરાવીને પરમધામિક ધ્રુવા પીડે છે. મૃગા પુત્ર કહે છે કે આ દશા મારી ત્યાં થયેલ હતી. ૫૬૮ા
तथा - "तुहं" त्याहि !
અન્વયા—હૈ માતા પિતા ! એ પરમાધાર્મિક દેવાએ મને એવુ' કહીને भांस वडाव्यु छे हे नार ! तने पडेला लवभां खंडाई - खण्डानि खंड ३५ तथा सोल्लाणि य-शुलाकृतानि च शूज पर पशवीने यावे मंसाई - मांसानि भांस पिया - प्रियागि धान प्रिय हुतु मेथी हुवे यांन अारनु भांस मा. आ प्रभाणे स्मरण ४शवीने ते सोये समसाई - स्वमांसानि भारा शरीरभानुं भांस अधीने अने तेना टुकडा मनावीने शूज उपर थडावी पछी तेने अग्गित्रष्णाइ=
उत्तराध्ययन सूत्र : 3