Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. २१ एकान्तचर्यायां समुदपालदृष्टान्तः
छाया-हित्वा संगं च महाक्लेशं महामाहं, कृष्णं भयावहम् ।
पर्यायधर्मम् अभ्यरोचत, व्रतानि शीलानि परीपाश्च ॥१५॥ टीका-'जहि नु' इत्यादि।
स समुद्रपालमुनिः महाक्लेश-महान् क्लेशः चतुर्गतिसंसारभ्रमणलक्षणं दुःखं यस्माद् यस्मिन्वा स महाक्ले शस्तं, महामोहं=महान् मोहः स्यादिविषयः, अज्ञानं वा यस्मात्स महामोहस्तं. कृष्णं कृष्णलेश्या हेतुत्वात्कृष्णम्, अत एव भया. वह-प्राणिनां भयजनकं संग-स्वजनादिसम्बन्धं हित्वा त्यत्तवा पर्यायधर्म-पर्यायः -प्रव्रज्यापर्यायस्तत्र यो धर्मः महावतादिस्तम् अभ्यरोचत-अभिरोचितवानतदनुष्ठानविषयां रुचि कृतवान्। पर्यायधर्ममेव विशेषादाह-व्रतानि-महावतानि,
दीक्षित होने के बाद समुद्रपाल मुनि ने जिस प्रकार से अपनी प्रवृत्ति की तथा जिस तरह से अपनी आत्मा को अनुशासित किया वह बात सूत्रकार अब इन गाथाओं द्वारा प्रगट करते हैं--
'जहितु इत्यादि।
अन्वयार्थ--समुद्रपाल मुनिने (महाकिलेसम्-महाक्लेशम् ) इस चतुगतिरूप संसार में भ्रमणरूप महान कष्ट के दायक (महंतमोह-महामोहम्) अतिमोह एवं अज्ञान के वर्धक (कसिणं-कृष्णम्) कृष्णलेश्या के हेतु होने से स्वयं कृष्णरूप तथा (भयावहं-भयावहम्) प्राणियों को विविध प्रकार के भयों का जनक होने से भयावह ऐसे (संग-संगम्) स्वजनादि संबंधरूप परिग्रहका (जहित्तु-हित्वा) परित्यागकर (परियायधम्म-पर्यायधर्मम् ) प्रव्रज्यापर्याय के महावतादि रूप धर्मको अंगीकार किया। उसके पालन में उनकी विशेष अभिरुचि जगी। इसी बात को सूत्रकार
દીક્ષિત થયા પછી એ સમુદ્રપલ મુનિએ જે પ્રકારની પિતાની પ્રવૃત્તિ કરી તથા જે પ્રકારથી પિતાના આત્માને અનુશાસિત બનાવ્યો છે એ વાત સૂત્રકાર હવે मा थामे द्वारा प्रगट ४२ छ-"जहित्त" ईत्याहि.
मन्वयार्थ -समुद्रपाल मुनिम्मे महाकिलेसम्-महाक्लेशम् । यतुगत३५ संसारमा भ्रम ३५ महान ४०ने मापना२ महंतमोह-महामोहम् अति भोर मने सज्ञानने वधारना२ कसिणं-कृष्णम् कृणवेश्याने हेतु वाथी पोते १५७३५ तथा भयावहं-भयावहम प्राणीयाने विविध प्रा२ना भयाने मापना२ डावाश्री भयावह सेवा संग-संगम् वन माहिस ३५ परिवहनी जहित्त-हित्वा परित्याग ४२री परियायधम्म-पर्यायधर्मम् प्रवन्या पर्यायना महानताहि३५ भने मजीआर કર્યો. એના પાલનમાં એની વિશેષ અભિરૂચી જાગી. આ વાતને સૂત્રકાર વચાળ
८.
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3