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.प्रथम सर.
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पलङ्गसे नीचे उतरे और चलनेको तैयार हो गये। इतनेमें उनकी धोतीका छोर पकड़कर उनकी स्त्रीने कहा--हे प्रियतम! आप का भी बड़ा भोला-भाला स्वभाव है। आपको राज-नीति तो बिलकुल ही मालूम नहीं है। इसीसे आधीरातको यों अकेले चले जा रहे हो। चतुर पुरुष कभी किसीका विश्वास नहीं करते। नीतिमें कहा हुआ है कि भला किसने राजाको मित्रता निबाहते देखा या सुना है ? हे स्वामी ! आपकी जगहपर सज्जन कभी काम करता ही है, आज उसोको भेज दीजिये।" यह सुन कुमार अपनी स्त्रीकी चतुरतापर मुग्ध होकर विचार करने लगे,—“अहा! इसकी बुद्धि कितनी प्रौढ़ है !” यह विचार कर वे मन-ही-मन बड़े आश्चर्य में पड़ गये। इसके बाद उन्होंने सज्जनको, जो उसी परके आँगनमें सोया हुआ था, जगाकर, राजाके पास भेज दिया। वह भी खुश होता हुआ महलके भीतर वाले रास्तेसे होकर चला । ज्योंही वह थोड़ी दूर गया होगा, त्योंही पास ही छिपे हुए राजा के नौकरोंने उसे तलवारके घाट उतार दिया। इसोसे कहते हैं कि “खाद खनै जो औरको वाको कूप तैयार ।” उसने दूसरेको मरवानेकी धुन बाँधी थी ; : पर आप ही मारा गया। उसी समय उसके अकस्मात् मारे जानेकी ख़बर चारों ओर फैल गयी । गड़बड़ सुन राजकुमारी भी हालचाल मालूम करने आयी। सब हाल देख-सुनकर राजकुमारीने अपने स्वामीके पास आकर प्रसन्नताके साथ कहा,-“हे नाथ! हे सरल-स्वभाव! अगर आपने मेरी बात नहीं मानी होती, तो आज मेरी क्या दुर्दशा होती ? हे आर्य