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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
अथ अशरणभावना लिख्यते । आगे अशरणभावनाका व्याख्यान करते हैं-सो प्रथम ही कहते हैं कि, जब जीवका काल (मृत्यु) आता है, तो कोई भी शरण नहीं है,
नस कोऽप्यस्ति दुर्बुद्धे शरीरी भुवनन्नये । - यस्य कण्ठे कृतान्तस्य न पाशः प्रसरिष्यति ॥१॥ ___ अर्थ-हे मूढ दुर्बुद्धि प्राणी! तू जो किसीकी शरण चाहता है, सो इस त्रिभुवनमें ऐसा कोई भी शरीरी (जीव) नहीं हैं कि, जिसके गलेमें कालकी फांसी नहीं पड़ती हो। भावार्थ-समस्त प्राणी कालके वश हैं ॥ १ ॥
समापतति दुर्वारे यमकण्ठीरवक्रमे ।
त्रायते तु नहि प्राणी सोयोगैस्त्रिशैरपि ॥२॥ अर्थ-जब यह प्राणी दुर्निवार कालरूपी सिंहके पांवतले आजाता है, तब उद्यमशील देवगण भी इसकी रक्षा नहिं कर सकते हैं; अन्य मनुष्यादिकोंकी तो क्या सामर्थ्य है कि, रक्षाकर सकें ॥२॥
सुरासुरनराहीन्द्रनायकैरपि दुर्द्धरा ।
जीवलोकं क्षणार्डेन वनाति यमवागुरा ॥३॥ अर्थ-यह कालका जाल अथवा फंदा ऐसा है कि, क्षणमात्रमें जीवोंको फांस लेता है और सुरेन्द्र असुरेन्द्र नरेन्द्र तथा नागेन्द्र भी इसका निवारण नहीं. कर सकते
अब कहते हैं कि, यह काल अद्वितीय सुभट है,
जगत्रयजयीवीर एक एवान्तकः क्षणे। · इच्छामात्रेण यस्यैते पतन्ति त्रिदशेश्वराः ॥४॥
अर्थ-यह काल तीन जगतको जीतनेवाला अद्वितीय सुभट है, क्योंकि इसकी इच्छामात्रसे देवोंके इन्द्र भी क्षणमात्रमें गिर पडते हैं, अर्थात् स्वर्गसे च्युत हो जाते हैं। फिर अन्यकी कथा ही क्या है ? ॥ ४ ॥ आगे कहते हैं कि, जो मृत्यु-प्रास-पुरुषका शोक करते हैं वे मूर्ख हैं,
शोचन्ति खजनं मूर्खाः स्वकर्मफलभोगिनम् । नात्मानं वुद्धिविध्वस्ता यमदंष्ट्रान्तरस्थितम् ॥५॥ अर्थ-यदि अपना कोई कुटुंबीजन अपने कर्मवशात् मरणको प्राप्त हो जाता है, तो नष्टबुद्धि मूर्खजन उसका शोच करते हैं; परन्तु आप खयम् यमराजकी दाढोंमें आया हुआ है, इसकी चिन्ता कुछ भी नहीं करता है! यह बड़ी मूर्खता है ॥ ५ ॥