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ज्ञानार्णवः।
- २७५ विकीर्यते मनः सद्यः स्थानदोषेण देहिनाम् ।।
तदेव स्वस्थतां धत्ते स्थानमासाद्य वन्धुरम् ॥ २२॥ __ अर्थ-जीवोंका चित्त स्थानके दोपसे तत्काल विकारताको प्राप्त होता है और वही मन मनोज्ञ स्थानको पाकर खस्थताको (निश्चलताको ) प्राप्त होता है ॥ २२ ॥ उन्ही दूषित थानोंको कहते हैं,
म्लेच्छाधमजनैर्जुष्टं दुष्टभूपालपालितम् । पापण्डिमण्डलाक्रान्तं महामिथ्यात्ववासितम् ॥ २३ ॥ कोलकापालिकावासं रुद्रक्षुद्रादिमन्दिरम् । उद्धान्तभूतवेतालं चण्डिकाभवनाजिरम् ॥ २४ ॥ पण्यस्त्रीकृतसंकेतं मन्दचारित्रमन्दिरम् । क्रूरकर्माभिचाराढ्यं कुशास्त्राभ्यासवन्चितम् ॥ २५ ॥ क्षेत्रजातिकुलोत्पन्नशक्तिस्वीकारदर्पितम्। . मिलितानेकदुःशीलकल्पिताचिन्यसाहसम् ॥ २६॥ गतकारसुरापानविटवन्दिवजान्वितम्। . . पापिसत्वसमाकान्तं नास्तिकासारसेवितम् ॥ २७॥ क्रव्यादकामुकाकीण व्याधविध्वस्तश्वापद। . शिल्पिकारुकविक्षिसमग्रिजीवजनाचितम् ।। २८ ।। प्रतिपक्षशिरशूले प्रत्यनीकावलम्बितम् । .
आत्रेयीखण्डितव्यङ्गसंसृतं च परित्यजेत् ॥ २९॥ अर्थ-ध्यान करनेवाला मुनि आगे लिखे स्थानोंको छोड़े । म्लेच्छ पापी बनौक, रहनेका स्थान, दुष्ट राजाके (जमीदारके) अधिकारका स्थान, पाखंडी भेषियोंके समू. हसे घिरा हुआ स्थान, तथा महामिथ्यात्वका स्थान, कुलदेवता योगिनीका स्थान, रुद्र नीच देवादिकका मंदिर जिसमें उद्धत भूत वेताल नाचतें हों, तथा चंडिका देवीके भवनका मांगण (चौक) तथा व्यभिचारिणी स्त्रियोंके संकेत किये स्थान, कुचारित्री पाखंढियोंका मंदिर तथा क्रूर कम और अमिचारसे 'पूर्णस्थान जिसमें कुशास्त्रोंका अभ्यास होता हो ऐसा स्थान, तथा जमीदारी जाति और कुलसे उत्पन्न हुई शक्तिसे अधिकारमें आ जानेसे गर्वित अर्थात् यह हमारा निवास है अन्यको प्रवेश नहीं करने दें ऐसा स्थान, तथा जिसमें अनेक दुःशील खोटे पुरुषोंने मिलकर कोई अचिंत्य साहसिक कार्य रचा हो । अमवा द्यूतक्रीडावाले जुआरी. मद्यपानी, व्यभिचारी बंदीनन इत्यादिके समूहसहित स्थान, तथा पापी प्राणियोंसे घिरा हुआ, तथा नास्तिकोंके द्वारा सेवित हो,