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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् · अर्थ-यह मनुप्यक्षेत्र निरंतर कहीं तो कुमानुष, कुभोगभूमिसहित है, कहीं व्यन्तर देवोंसे भरा है, कहीं उत्तम भोगभूमि सहित हैं, इसप्रकार संक्षेपसे मध्यलोकका वर्णन किया ॥ ८७ ॥ __ आगे ऊर्ध्वलोकका वर्णन करते हैं,
ततो नभसि तिष्ठन्ति विमानानि दिवौकसाम् ।
चरस्थिरविकल्पानि ज्योतिष्काणां यथाक्रमम् ॥ ८८॥ अर्थ-उस मध्यलोकके ऊपर आकाशमें ज्योतिषी देवोंके विमान रहते हैं. वे चर स्थिर भेदसे दो प्रकारके हैं अर्थात् कई विमान तो निरन्तर गमन करते रहते हैं और कई विमान स्थिर रहते हैं ॥ ८८॥
तदूधै सन्ति देवेशकल्पाः सौधर्मपूर्वकाः।
ते षोडशाच्युतखर्गपर्यन्ता नभसि स्थिताः ॥ ८९॥ अर्थ-ज्योतिषी देवोंके विमानोंके ऊपर कल्पवासी देवोंके कल्प (विमान) है. जिनके सौधर्म खर्ग, ईशानखर्ग आदि नाम हैं. वे अच्युतवर्गपर्यन्त सोलह हैं और आ. काशमें स्थित हैं ॥ ८९ ॥
उपयुपरि देवेशनिवासयुगलं क्रमात् ।
अच्युतान्तं ततोऽप्यूर्वमेकैकत्रिदशास्पदम् ॥९॥ अर्थ-वे देवोंके निवास (स्वर्ग) आकाशमें दो दो वर्गके ऊपर दो खर्ग फिर उन दोके ऊपर फिर दो वर्ग, इसप्रकार अच्युत खर्गपर्यन्त दो दोके आठ युगल हैं. और उनके ऊपर एक एक विमान करके नव अवेयक विमान हैं तथा एक अनुदिश और एक अनुत्तर विमान भी है ॥ ९ ॥
निशादिनविभागोऽयं न तत्र त्रिदशास्पदे ।
रत्नालोकः स्फुरत्युच्चैः सततं नेत्रसौख्यदः ॥ ११ ॥ अर्थ-उन देवोंके निवासोंमें रात्रिदिनका विभाग नहीं है. क्योंकि, वहांपर सूर्यचन्द्रमा नहीं हैं किन्तु नेत्रोंको सुख देनेवाला रत्नोंका उत्तम प्रकाश निरन्तर स्फुरायमान रहता है । ९१ ॥
वर्षातपतुषारादिसमयैः परिवर्जितः।
सुखदः सर्वदा सौम्यस्तत्र कालः प्रवर्तते ॥ ९२॥ अर्थ-उन खर्गो (अवेयकोंमें) वर्षा, शीत, आतप आदिक समय वा ऋतुओंसे रहित सदाकाल सुख देनेवाला सौम्य मध्यस्थ काल (वसन्तऋतु) रहता है ॥ ९२ ॥
उत्पातभयसन्तापभङ्गचौरारिविद्धराः।। न हि खमेऽपि दृश्यन्ते क्षुद्रसत्त्वाश्च दुर्जनाः ॥ ९३ ॥