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ज्ञानार्णवः।
३७१ अर्थ-तथा ख!में उन देवोंकी सेवा करनेवाले देव हैं, वंदीजन हैं, गानेवाले हैं, दंढ धरनेवाले हैं, तथा नाचनेवाली विलासिनी अप्सरायें हैं ॥ १२१॥
तत्रातिदिव्यताधारे विमाने कुन्दकोमले।
उपपादिशिलागर्भे संभवन्ति स्वयं सुराः ॥ १२२ ॥ अर्थ-वर्गों में अतिमनोजताका आधार ऐसे विमानमें कुन्दके पुप्पसमान कोमल ऐसी उपपादि शिलाके मध्यसे देव खयमेव उत्पन्न होते हैं । भावार्थ-देवोंके उत्पन्न होनेकी उपपादि शय्या है उसपर जन्म लेते हैं. जिसप्रकार कोई सोया हुआ आदमी : उठता है इसीप्रकार जिसका स्वर्गमें जन्म होता है वह जीव पूर्णीग उस उपपाद शय्या) पर उठता है ।। १२२ ॥
सर्वाक्षसुखदे रम्ये नित्योत्सवविराजिते । गीतवादिनलीलाढ्ये जयजीवखनाकुले ॥ १२३ ॥ दिव्याकृतिसुसंस्थानाः सप्तधातुविवर्जिताः। कायकान्तिपयःपूरैः प्रसादितदिगन्तराः ॥ १२४ ॥ शिरीपसुकुमाराङ्गाः पुण्यलक्षणलक्षिताः। अणिमादिगुणोपेता ज्ञानविज्ञानपारगाः ॥ १२५ ।। मृगाङ्कमृतिसंकाशाः शान्तदोषाः शुभाशयाः। अचिन्त्यमहिमोपेता भयक्लेशार्तिवर्जिताः ॥ १२६ ॥ वर्द्धमानमहोत्साहा वज्रकाया महाबलाः।
अचिन्त्यपुण्ययोगेन गृह्णन्ति वपुरूजितम् ॥ १२७॥ अर्थ--उस उपपाद शय्याका स्थान कैसा है कि-समस्त इन्द्रियोंको सुख देनेवाला है. रमणीक है. नित्यही उत्सवसहित विराजता है. गीत वादित्रादि लीलाओंसहित है. तथा "जयवन्त होओ चिरंजीवी होओ" ऐसे शब्दोंसे व्याप्त है ॥ १२३ ॥ ऐसे स्थानपर जो देव उत्पन्न होते हैं वे कैसे हैं कि-दिव्य सुन्दराकार है संस्थान जिनका और जिनका सप्तधातुरहित शरीर है. जो शरीरकी प्रभारूपी जलके प्रभावोंसे समस्त दिशा
ओंको प्रसन्न करनेवाले हैं ॥ १२४ ॥ जिनका शरीर शिरीपपुष्पके समान कोमल है, पवित्र लक्षणोंसहित है. अणिमा महिमादि गुणोंसे युक्त हैं. अवधिज्ञानादि विज्ञान चतुरताओंके पारगामी हैं ॥ १२५ ॥ तथा चन्द्रमाकी मूर्तिसमान हैं, जिनमें सव दोष शान्त होगये हैं, जिनका चित्त शुभ है, अचिन्त्य महिमासहित हैं, भय क्लेशपीडासे रहित हैं॥ १२६ ॥ जिनका उत्साह बढ़ताही रहता है, वज्रके समान दृढ शरीर है, बड़े पराक्रमी हैं, इसप्रकारके देव अचिन्त्य पुण्यके योगसे उस उपपादस्थानमें शरीरको धारण करते हैं ।। १२७ ॥