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ज्ञानार्णवः ।
४४३ इन्द्रियोंके बिना भगवान्के कैसे सुख होता है सो दिखलाते हैं।
त्रिकालविषयाशेषद्रव्यपयार्यसङ्कुलम् । . जगत्स्फुरति बोधार्के युगपद्योगिनां पतेः ॥ १९ ॥ अर्थ-योगीश्वरोंके पति श्रीसिद्ध भगवानके ज्ञानरूपी सूर्यमें भूत, भविष्यत्, वर्तमान तीनों काल सम्बन्धी समस्त द्रव्य पर्यायोंसे व्याप्त जो यह जगत् है सो एकही समयमें स्पष्ट प्रत्यक्ष प्रतिभासित होता है । भावार्थ-इन्द्रियज्ञान तुच्छ है । उससे उत्पन्न हुआ सुख कितना हो सकता है । सिद्ध भगवानके एक ही समयमें समस्त पदार्थोंका ज्ञान होता है इसलिये उसके सुखकी क्या महिमा ? सुखका कारण ज्ञान है । जहां पूर्ण ज्ञान है वहां पूर्ण सुख भी है ।। ६९ ॥ अब सिद्ध भगवानके गुणोंकी महिमा कहते हैं ।
सर्वतोऽनन्तमाकाशं लोकेतरविकल्पितम् ।
तस्मिन्नपि घनीभूय यस्य ज्ञानं व्यवस्थितम् ॥ ७० ॥ अर्थ-यह आकाश सर्वतः अनन्त है और उसके लोक और अलोक ऐसे दो भेद हैं । उस समस्त आकाशमें सिद्ध परमेष्ठीका ज्ञान घनीभूत होकर, भरा हुआ है ॥ ७० ॥
निद्रातन्द्राभयभ्रान्तिरागद्वेषार्तिसंशयैः।
शोकमोहजराजन्ममरणाद्यैश्च विच्युतः ॥ ७१ ।। अर्थ-श्रीसिद्ध भगवान् निद्रा, तन्द्रा, भय, भ्रान्ति, राग, द्वेष, पीडा और संशयसे रहित हैं तथा शोक, मोह, जरा, जन्म और मरण इत्यादिकसे रहित हैं ॥ ७१ ॥
क्षुत्तुन्नममदोन्मादमूर्छामात्सर्यवर्जितः। .
वृद्धिहासव्यतीतात्मा कल्पनातीतवैभवः ॥७२॥... 'अर्थ~-और क्षुधा, तृषा, खेद, उन्माद, मूर्छा, और मत्सर · भावोंसे रहित हैं और न इनकी आत्मामें वृद्धि हास (घटना बढ़ना) है, और इनका . विभव कल्पनातीत है ।। ७२ ॥
निष्कल करणातीतो निर्विकल्पो निरञ्जनः। .
अनन्तवीतापन्नो नित्यानन्दाभिनन्दितः ॥७३॥ .. अर्थ-सिद्ध भगवान् शरीररहित हैं, इन्द्रियरहित हैं मनके विकल्पोंसे रहित हैं 'निरंजन हैं अर्थात् जिनके नये कर्मोका बंध नहीं है । अनन्तवीर्यताको प्राप्त हुए है अर्थात् अपने खभावसे कभी च्युत नहीं होते और नित्य आनन्दसे आनन्दरूप हैं अ. र्थात् जिनके सुखमें कभी विच्छेद नहीं होता ।। ७३ ॥ ..