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. ज्ञानार्णवः । इसमकार ध्यानके विनके कारण स्थानोंका वर्णन किया
दोहा।
. जहां क्षोम मन ऊपजै, तहां ध्यान नहीं होय ।
ऐसे थान विरुद्ध हैं, ध्यानी त्यागै सोय ॥ २७, . इति श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते योगप्रदीपाधिकारे ज्ञानार्णवे ध्यानविरुद्ध
. स्थानवर्णनं नाम सप्तविंशं प्रकरणं समाप्तम् ।। २७ ॥ .
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अथ अष्टाविंशं प्रकरणं लिख्यते ।
अ अब ध्यानके योग्य स्थानोंको कहकर आसनका विधान कहते हैं, तहां प्रथम ध्यानके योग्य स्थान कहते हैं,
सिद्धक्षेत्रे महातीर्थ पुराणपुरुषाश्रिते।
कल्याणकलिते पुण्ये ध्यानसिद्धिः प्रजायते ॥१॥ . अर्थ-सिद्धक्षेत्र, जहां कि बड़े २ प्रसिद्ध पुरुष ध्यान कर सिद्ध हुए हों, तथा पुराणपुरुष अर्थात् तीर्थकरादिकोंने जिसका आश्रय किया हो ऐसे महातीर्थ; जो तीर्थंकरोंके कल्याणक स्थान हों ऐसे स्थानोंमें ध्यानकी सिद्धि होती है ॥ १ ॥
सागरान्ते वनान्ते वा शैलशङ्गान्तरेऽथवा। '' पुलिने पद्मखण्डान्ते प्राकारे शालसङ्कटे ॥२॥ सरितां सङ्गमे दीपे प्रशस्ते तरुकोटरे। ' "" जीर्णोद्याने स्मशाने वा गुहाग: विजन्तुके ॥ ३॥ सिद्धकूटे जिनागारें कृत्रिमेऽकृत्रिमेऽपि वा। . महर्द्धिकमहाधीरयोगिसंसिद्धवान्छिते ॥४॥ मनःप्रीतिप्रदे शस्ते शङ्काकोलाहलच्युते। . . सर्वतुसुखदे रम्ये सर्वोपद्रववर्जिते ॥५॥ शुन्यवेश्मन्यथ ग्रामे भूगर्भ कदलीगृहे.। . , पुरोपवनवेद्यन्ते मण्डपे चैत्यपादपे॥६॥ . . वर्षातपतुषारादिपवनासारवर्जिते।
स्थाने जागर्त्यविश्रान्तं यमी जन्मार्तिशान्तये ॥७॥ १ भूएहे' इत्यपि पाठः।