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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
अर्थ – शत्रुके शस्त्रप्रहार होतेसमय अपना जो खर भरा हो उस स्वरकी तरफ वैरी रहे तो उस पुरुषकी सामर्थ्य बलवान् शत्रुसे भी भेदी नहीं जा सक्ती । भावार्थवैरीके साथमें लड़ाई होते बैरीकी तरफ अपना भरा खर हो वही रखनेसे अपनी जीत होती है ॥ ६३ ॥
अब स्त्रीके गर्भसंबंधी प्रश्नके उत्तर देनेका वर्णन है, - आर्या ।
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वरुणमहेन्द्रौ शस्तौ प्रश्ने गर्भस्य पुत्री ज्ञेयौ । इतरौ स्त्रीजन्मकरी शून्यं गर्भस्य नाशाय ॥
६४ ॥
अर्थ - वरुण और महेन्द्र इन दोनों पवनोंमें प्रश्न हो तो पुत्र जन्मैगा और अग्नि तथा वायुतत्त्वमें प्रश्न हो तो कन्या होगी - और रीते खरमें प्रश्न हो तो गर्भ नष्ट हो जायगा ऐसा कहै ॥ ६४ ॥
श्लोक ।
नासाप्रवाह दिग्भागे गर्भार्थं यस्तु पृच्छति ।
पुरुषः पुरुषादेशं शून्यभागे तथाङ्गना ॥ ६५ ॥
अर्थ --- जिस तरफका खर चलता हो उसी तरफ होकर प्रश्न करे और वह प्रश्न करनेवाला पुरुष हो तो पुत्र होना कहै और शून्य भाग अर्थात् रीते खरकी तरफ होकर प्रश्न करे तो पुत्री होना कहै ॥ ६५ ॥
विज्ञेयः सम्मुखे षण्ढः सुषुम्नायामुभौ शिशू । गर्भहानिस्तु संक्रान्तौ समे क्षेमं विनिर्दिशेत् ॥ ६६ ॥
अर्थ – यदि सन्मुख होकर प्रश्न करे तो नपुंसक सन्तान होगी ऐसा कहैं तथा दोनों नासिका पूर्ण भरी हुई पूछे तो दो बालक होना कहै. पवनके संक्रमके ( पलटनेके) समय पूछे तो गर्भकी हानि हो और दोनों तरफ पवन सम बहती हुई में पूछे तो क्षेम कुशल कहै ॥ ६६ ॥
भार्या ।
ज्ञायेत यदि न सम्यग्मरुत्तदा विन्दुभिः स निश्श्रेयः । सितपीतारुणकृष्णैर्वरुणावनिपवनदहनोत्यैः ॥ ६७ ॥
अर्थ - जो कदाचित् पवन भलेप्रकार जाननेमें नहीं आवै तौ फिर श्वेत पीत रक्त कृष्ण बिंदुओंसे निश्चय करना । वे बिंदु वरुण से उत्पन्न हुए तो सफेद होते हैं. पृथिवीके उत्पन्न हुये पीत (.पीले) होते हैं तथा अभिसे रक्त और पवनसे काले उत्पन्न होते हैं ॥ ६७ ॥