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ज्ञानार्णवः । असिपत्रवनाकीणे शस्त्रशूलासिसंकुले । नरकेऽत्यन्तदुर्गन्धे वसामुक्कृमिकर्दमे ॥ १६ ॥.. शिवाश्वव्याघ्रकङ्काढये मांसाशिविहगान्विते। . वज्रकण्टकसंकीर्णे शूलशाल्मलिदुर्गमे ॥ १७॥ संभूय कोष्टिकामध्ये ऊर्ध्वपादा अधोमुखाः।।
ततः पतन्ति साक्रन्दं वज्रज्वलनभूतले ॥ १८ ॥ अर्थ-नरक कैसे हैं, कि असिपत्र (तरवार) सरीखे हैं पत्र जिनके ऐसे वृक्षोंसे तथा शूल तलवार आदि शस्त्रोंसे व्याप्त हैं, अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त हैं, वसा (अपकमांस), रुधिर और कीटोंसे भरा हुआ कर्दम है जिनमें ऐसे हैं, तथा सियाल, श्वान, व्याघ्रादिकसे तथा मांसभक्षी पक्षियोंसे भरे हुए हैं, तथा वज्रमय कांटोंसे शूल और शाल्मलि वृक्षोंसे दुर्गम भरे हुए हैं अर्थात् जिनमें गमन करना दुःखदायक हैं, ऐसे नरकोंमें विलोंके संपुट में उत्पन्न होकर वे नारकी जीव ऊंचे पांव और नीचे मुख चिल्लाते हुए उन संपुटोंसे (उत्पत्तिस्थानोंसे ) वज्राग्निमय पृथिवीमें गिरते हैं ।। १६-१७-१८ ॥
अयाकण्टककीर्णासु द्रुतलोहाग्निवीथिषु ।
छिन्नभिन्नविशीर्णाङ्गा उत्पतन्ति पतन्ति च ॥१९॥ अर्थ-उस नरकभूमिमें वे नारकी जीव छिन्नभिन्न खंड खंड होकर विखरे हुए अंगसे पड़कर वारंवार उछल २ के गिरते हैं. सो कैसी भूमिमें गिरते हैं कि जहांपर लोहेके कांटे विखरे हुए हैं और जिनमें गलाया हुआ लोहा और अमि ॥ १९ ॥
दुःसहा निष्प्रतीकारा ये रोगाः सन्ति केचन । ।
साकल्येनैव गात्रेषु नारकाणां भवन्ति ते ॥ २० ॥ अर्थ-जो रोग असह्य हैं, जिनका कोई उपाय (चिकित्स) नहीं है ऐसे समस्त प्रकारके रोग नरकोंमें रहनेवाले नारकी जीवोंके शरीरमें रोमरोमप्रति होते हैं ॥ २० ॥ ____ अदृष्टपूर्वमालोक्य तस्य रौद्रं भयास्पदम् ।
दिशः सर्वाः समीक्षन्ते वराकाः शरणार्थिनः ॥ २१ ॥ . अर्थ-फिर वे नारकी जीव उस नरकभूमिको अपूर्व और रौद्र (भयानक ) देखकर किसीकी शरण लेनेकी इच्छासे चारों तरफ देखते हैं, परन्तु कहीं कोई सुखका कारण नहीं दीखता और न कोई शरणही प्रतीत होता है ॥ २१ ॥
'न तत्र सुजनः कोऽपि न मित्रं न च बान्धवाः..
सर्वे ते निर्दयाः पापाः क्रूरा भीमोग्रविग्रहाः ॥२२॥ अर्थ-उस नरकभूमिमें कोई सुजन मा मित्र वा बांधव नहीं है. सभी निर्दय, पापी, क्रूर और भयानक प्रचण्ड शरीरवाले हैं ॥ २२ ॥