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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अब अधोलोकमें जो नारकियोंकी निवासभूमि हैं उनका वर्णन करते हैं:
तत्राधोभागमासाद्य संस्थिताः सप्तभूमयः।
यासु नारकपण्डानां निवासाः सन्ति भीषणाः ॥१०॥ अर्थ-इस लोकके अधोभागमें सात पृथिवी हैं, जिनमें नारकी नपुंसक जीवोंके बड़े भयकारी निवासस्थान हैं ॥ १० ॥
काश्चिद्धनानलप्रख्याः काश्चिच्छीतोष्णसंकुलाः ।।
तुषारबहुलाः काश्चिद्भूमयोऽत्यन्तभीतिदाः ॥११॥ अर्थ-उन सप्त नरककी पृथिवियोमें कई तो वज्रानिके समान उष्ण है, कई शीत उष्णतासे व्याप्त हैं और कई अत्यन्त हिमवाली हैं. इसप्रकार अतिशय भयकारक हैं ॥११॥
उदीर्णानलदीसासु निसर्गोष्णासु भूमिषु । - मेरुमात्रोऽप्ययापिण्डः क्षिप्तः सद्यो विलीयते ॥१२॥ अर्थ-उदयरूप है अनि जिनमें ऐसे खाभाविक उप्णरूप भूमियोंमें यदि मेरुपर्वतकी समान लोहेका पिंड डाला जाय तो तत्काल गलकर भस्म हो जाय ऐसी उन भूमियोंमें उप्णता है ॥ १२ ॥
शीतभूमिष्वपि प्राप्तो मेरुमात्रोऽपि शीर्यते ।
शतधासावयापिण्डः प्राप्य भूमि क्षणान्तरे ॥ १३ ॥ अर्थ-जिसप्रकार उष्णभूमियोंमें मेरु समान लोहेका पिंड गल जाता है उसी प्रकार शीतप्रधान भूमियोंमें भी मेरुके समान लोहेका पिंड डाला जाय तो शीतके कारण क्षणमात्रमें खंड २ होकर बिखर जायगा ॥ १३ ॥
हिंसास्तेयान्ताब्रह्मबहारम्भादिपातकैः।
विशन्ति नरकं घोरं प्राणिनोऽत्यन्तनिर्दयाः ॥ १४ ॥ अर्थ-उन धोर नरकोंमें हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील (अब्रह्मचर्य) और बहुत आरंभ परिग्रहादिपापोंके करनेसे ही अत्यन्त निर्दयी जीव प्रवेश करते हैं। भावार्थ-हिंसादि पांच पाप अथवा सात व्यसनोंके सेवी जीव ही उन घोर नरकोंमें जाकर...दुःख. भोगते हैं ॥ १४ ॥
मिथ्यात्वाविरतिक्रोधरौद्रध्यानपरायणाः। . .
पतन्ति जन्तवः श्वभ्रे कृष्णलेश्यावशं गताः ॥ १५॥ . अर्थ-तथा मिथ्यात्व, अविरति, क्रोध, रौद्रध्यानमें तत्पर तथा कृष्ण लेश्याके वश हुए प्राणी नरकमें पड़ते हैं ॥ १५ ॥